कविता

राही चलता चल

कुछ भी नहीं है कल ओ राही
सब कुछ है इसी पल
लक्ष्यहीन मत बन राही
संकल्पों पर कर अमल
चलता चल चलता चल
ओ राही आगे बढता चल|
कल पर कुछ न टाल ओ राही
आज ही सब कर डाल
राह में अगर गिर जाए कहीं
तो खुद को तू सम्भाल
स्वयं पर कर यकीन राही
सपने देख विशाल
बुला रही है मंज़िल राही
चलता चल चलता चल |
मिलेगी लाखों मुसीबतें
उनके आगे नहीं झुकना
पहाड़ो सी होगी परेशानियाँ
साहस से तुम्हें लड़ना
राह में कहीं नहीं थकना
थकके कहीं नहीं रूकना
दिन न जाए ढल ओ राही
चलता चल चलता चल |
जो इन राहों में सो गया
वह सब कुछ अपना खो गया
जो इन राहों में ना सोया
उस ने ही सब कुछ है पाया
बेसुध सोकर के अपना
समय नहीं करना जाया
करले मंज़िल प्राप्त ओ राही
चलता चल चलता चल |
तेरा मार्ग हो अवरूद्ध राही
भूल नहीं जाना डगर
राह के कांटे लाखों होंगे
उसकी तू परवाह न कर
मिले असफलता अगर
फिर भी न रूकना मगर
हार से न हो विकल राही
चलता चल चलता चल

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com