आत्मजा
प्रिय लाज,
जन्मदिन मुबारक हो,
आज तुम 47 वर्ष की हो गई हो. विश्वास ही नहीं होता, कि कैसे इतना समय व्यतीत हो गया. समय जैसे पंख लगाकर उड़ गया. मुझे तो तुम अब भी वही नन्ही-सी दो चोटियों वाली माशा लगती हो. तुम्हें याद होगा, कि आज से 30 साल पहले तुम्हारे 18वें जन्मदिन पर मैंने तुम्हारे लिए एक कविता लिखी थी. कैसे भूलोगी भला! चलो कुछ पंक्तियां मैं ही याद करवा देती हूं-
”आत्मजा
हे अनंत को छूने की
आकांक्षामय आत्मजा सलोनी
तुझे देख यों भान हो रहा
मानो हो आशंकित मृगछौनी
कुछ वर्ष पूर्व नन्हीं कलिका-सी
मेरी बगिया में आई
आशा-आशंका-उल्लास का
सागर मानो साथ में लाई
तेरे कौतुकमय बचपन ने
खोल दिए स्मृति के द्वार
तेरे माध्यम से पहुंची मैं
अपने ही बचपन के पार.”
तुमने भी अपने बेटे के जन्म के समय ऐसा ही महसूस किया होगा. अब तो तुम्हारे बेटे के डॉक्टर बनने के सपने के साकार होने का समय भी आ गया है. याद है जब तुम सेबी की नौकरी के लिए दिल्ली से मुम्बई जाने वाली थीं, तब मुझे तुम्हारे खाने-पीने को लेकर कितनी चिंता हो रही थी! तब तुम मुझे कितनी सहजता से निश्चिंत रहने को कह रही थीं! आज जब तुम्हारा बेटा विशेष प्रशिक्षण के लिए पहली बार तुम लोगों से अलग रहने वाला है, तब तुम्हारी अवस्था भी वैसी ही हो रही है. कितनी चीज़ें तुमने उसके ले जाने के लिए सहेज रखी हैं! बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए यह सब करना स्वाभाविक ही है. कल हमने किया था, आज तुम कर रही हो, कल तुम्हारा बेटा करने वाला है. हमें तो इस बात की खुशी है, कि तुमने बेटे को सब कुछ सिखा दिया है, इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं होगी. हमारी तरफ से मेहुल को कह देना, कि डॉक्टर बनकर सेवा-भावना की शपथ को भूले नहीं. गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए हर समय विशेष प्रयत्नशील रहे. सुशील को हमारी नमस्ते व सबके लिए प्यार.
एक बार फिर जन्मदिन की कोटिशः शुभकामनाओं के साथ,
ममी