कविता

बेहतर है

व्यभिचार की लालसा में
आदमी हैवान जैसा हो गया
आज के इंसान से तो
जानवर भी बेहतर है ।
विष भरी जुबां से
तीखे तीर निकलते है
कभी-कभी कुछ बोलने से
मौन रहना बेहतर है ।
मुश्किल हालातो में 
छिड़ जाती अपनों से जंग
रिश्तों की खातिर कुछ जंगो में
हार जाना बेहतर है ।
अतिनिडरता के कारण 
कर जाते हदे पार सभी
कभी-कभी इंसान का 
डर जाना ही बेहतर है ।
नाजुक मिजाज मत बनों
लोग कमजोरियां पकड़ते है
किसी के सामने रोने से तो
मुस्कुरा के गम छुपाना बेहतर है ।

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- [email protected]