आयकर भर सुख से सो जाओ
चारों खाने चित्त हुए हैं ,
कलियुग के सब नेता ।
कोई आया सतयुग वाला ,
यह कैसा है नेता ।
मची खलबली भारत धरती
गंगा जमुना धारा में ।
बंद चवन्नी और अठन्नी ,
दस का सिक्का ज़ेबा में ।
गंगा माँ की भक्ति को देखो ,
आयकर की शक्ति को देखो ।
नहीं नोट जब हजम हुआ है ,
गंगा जी में फेक रहे हैं ।
जय जय गंगा मैया बोल के
आपने पाप को थोप रहे हैं ।
धर्म कर्म सपने ना जाने ,
जोंक जाति ये मस्ताने ।
मजदूरों का खून चूस कर
सरकारी धन मूस लूट कर ।
खुद को शेर बताने वाले
बिल में क्यों छिपते मस्ताने ।
काले धन से महल बनाया ,
बारी महल गिराने की ।
टैक्स जमा कर कर ले सफेदी,
नहीं तो तेरी बारी है !
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढी