कविता

आयकर भर सुख से सो जाओ

चारों खाने चित्त हुए हैं ,
कलियुग के सब नेता ।
कोई आया सतयुग वाला ,
यह कैसा है नेता ।
मची खलबली भारत धरती
गंगा जमुना धारा में ।
बंद चवन्नी और अठन्नी ,
दस का सिक्का ज़ेबा में ।
गंगा माँ की भक्ति को देखो ,
आयकर की शक्ति को देखो ।
नहीं नोट जब हजम हुआ है ,
गंगा जी में फेक रहे हैं ।
जय जय गंगा मैया 
बोल के
आपने पाप को थोप रहे हैं ।
धर्म कर्म सपने ना जाने ,
जोंक जाति ये मस्ताने ।
मजदूरों का खून चूस कर
सरकारी धन मूस लूट कर ।
खुद को शेर बताने वाले
बिल में क्यों छिपते मस्ताने ।
काले धन से महल बनाया ,
बारी महल गिराने की ।
टैक्स जमा कर कर ले सफेदी,
नहीं तो तेरी बारी है !

— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढी

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि