नोट वोट की ओट में
मोदी जी क्या नोट बंद कर दिए मानों भूकंप आ गया ज़मीन दहल गयी, राजनैतिक ज्वालामुखी नवीन काया कल्प रही थी। नवीनीकरण करते या समय दीवारें हिल गयी। नींव की मजबूती आधार लम्ब निर्भर करता है। नोट रूपी नींव ने कालाबाजारियों को चारो खाने चित कर दिया, हारे को हरिनाम की माला पहन विपक्ष ने पहल किया क्यों न मोदी की खिचाई की जाय, जिनके सपने में आने पर रूह काँप जाती थी सबसे बड़े दुश्मन थे पारिवारिक नहीं राजनैतिक मिला रहें हैं हाथ —– आख़िर कितने दिन कब तक करोगे घेराव मोदी का सत्य की राह पर चलना कठिन कार्य है अपने भी पराए बन जाते हैं। आख़िर आपकी खलबली का कारण क्या है कितने काले धन हैं आपके पास? बैंक में डालो मोदी ने कब माना किया विकल्प है आपके पास। आज वही लो ज़्यादा परेशान नज़र आ रहे हैं ब्लैक मनी ज़्यादा है या उनके ख़ासमखास, आख़िर चंदा देते है फिकर क्यों न करे ब्लैक मनी ही देते हैं [कुछ अपवाद को छोड़कर] नेता आख़िर अब क्या करेंगे चुनाव में पैसा लगता है? अब वे पैसे भी बेकार हो गये। निर्वाचन आयोग के नियम को तोड़कर चुनाव लड़ने वाले बाहुबली घायल हो चुके है मोदी का दिव्यास्त्र की कोई संजीवनी नहीं मिल रही है जिससे मूर्छित महारथियों को जीवित किया जा सके उसी मंडली कोई लाल बूझक्कण थे क्यों न गुरु शुक्राचार्य से मिला जाय कुछ समस्या का समाधान हो जाय शंकर जी को प्रसन्न करके जो विद्या लाए हैं आख़िर वह कब काम आएगी किसी विश्वस्त सूत्रों से पता चला वे भी तपस्या में चले गये हैं आज उनकी मनोदशा मनोवैज्ञानिक ही समझ सकता है सामान्य जनता के पास पैसे कहाँ हैं ? जो भी थे जमा करा रहे हैं दूसरे के कंधे पर बंदूक रख कर जनहित की बात महोदय जी हम आप के लिए नहीं कर रहे है शुभचिंतक परदे के पीछे है वे बोल नहीं पा रहे है मै उनकी आवाज़ हूँ उनमें ही मेरा कल निहित है। आप आज को देखते है मै कल को देखता हूँ आप हरे गेरूए में हो मै खादी में हूँ चोली दामन का साथ है तेरा मेरा। तेरा धन मेरा बल लोकलुभावन भाषण के कवच काम नहीं कर रहे है ये जनता है सब जानती है नेता जी भाषण बंद करो अब लडो चुनाव।
नोट वोट की ओट में, नेता थे गुमराह।
परदा आँखन में पड़ा, खोज रहे हम राह।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी