पुरुषार्थ से पुरुष
पुरुष है सृष्टि का बीज
संतति की वंश वृद्धि का स्रोत
माँ – पिता का लाडला ध्रुव – सा बेटा
बहन की आँखों का तारा प्रह्लाद – सा भाई
कामनी का प्रेमी , पति , हमसफ़र बन
जीवन को रसमय , रंगीन करता
संतति का पिता बन फर्ज निभाता
है लाठी का सहारा माँ – पिता का
बन के दादा नाना , चाचा , ताऊ , मामा
कितने सारे रिश्तों को निभाता पुरुष
सिंह – सा शूरवीर , स्वतंत्र , स्वाभिमानी
पुरुषार्थ की पूर्णिमा से
लेकिन जब मानसिकता विकृत होती
दामिनी सरीखी नारी जाति से
अनाचार के अमा से आच्छादित
दुष्कर्मी का देता सबूत
वेबफाई , दुर्व्यहार , कुकृत्य का काला कलंक
समाज को लीलता
क्या ही अच्छा हो
सदवृति का उदात्त चरित्र बन
सुसमाज संसार का सृजन , सर्जन करे ।
वाशी , नवी मुंबई