गज़ल
ज़ख्म सारे भर गए पर दाग अब भी बाकी है,
करनी थी तुमसे जो मुझे बात अब भी बाकी है,
रूठ गया चाँद भी शमा ने भी दम तोड़ दिया,
राह दिखाएगा कौन रात अब भी बाकी है,
तुमको भूलने की लाख कोशिशें तो की मगर,
दिल के खंडहरों में तेरी याद अब भी बाकी,
सदियां गुज़र गईं तुझे वादा किए हुए मगर,
तनहाई की वो एक मुलाकात अब भी बाकी है,
चला तो गया है वो मुझसे ताल्लुकात तोड़ के,
मेरी वफाओं का पर हिसाब अब भी बाकी है,
थोड़ा इंतज़ार करो मौत के फरिश्तो अभी,
हाथ में है जाम और शराब अब भी बाकी है,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।