गीतिका/ग़ज़ल

किसी गुरू की नहीं और किसी न चेले की

किसी गुरू की नहीं और किसी न चेले की
ग़ज़ल नहीं है बपौती किसी अकेले की

चला रहे हैं वतन आज हुक्मरां ऐसे
नहीं है जिनमें कोई अक्ल एक धेले की

ये सोच को भी गिरा देगी एक दिन तेरी
खरीदने से बचो चीज़ कोई ठेले की

बताऊँ क्या है मुहब्बत तो सुन लो बस इतना
ये चीज़ काम की है पर बड़े झमेले की

वो भीड़ में तेरी नज़रों से नज़रें टकराना
मुझे हैं आज तलक याद बात मेले की

बहुत है दूर करेले सी बात करना तो
न खाई चीज़ तलक भी कभी करेले की

महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
01 दिसम्बर, 2016

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804