बाँझ
बाँझ
घर की सारी ही महिलायें सजी धजी पूजन की तैयारी कर रही थीं । गीत गाये जा रहे थे । इंतज़ार हो रहा था पण्डितजी का ।
बाबूजी ने अपने बड़े बेटे से कहा , ” पण्डितजी को फ़ोन करके पूछो तो सही कितनी देर में आ रहे हैं ? ”
” जी बाबूजी ।” बेटे ने बाबूजी को उत्तर दिया ।
माँ ने बड़ी बहू को सम्बोधित होते हुए कहा , ” देखो बहू , मैं नहीं चाहती कि छोटी बहू इस पूजन में शामिल हो । उस बाँझ का साया भी पड़े मुझे बर्दास्त न होगा । ”
बाबूजी ने भी यह बात सुनी , और उन्होंने घोषणा की । सब कान खोलकर सुनलो , ” घर के सभी सदस्य इस पूजन में शामिल होंगे । हाँ सिर्फ छोटे को छोड़कर । शक्ति पूजन में मैं नहीं चाहता कि कोई ऐसा सदस्य इसमें शामिल हो जिसने अपने स्वार्थ के चलते दूसरा घर बसा लिया हो और बहू पर लांछन लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी हो । ”
छोटी बहू ने अपने ससुरजी को कृतज्ञता पूर्वक देखकर उनको नमन किया ।