धैर्य का अवतरण
सुलेखा को भले ही तंगहाली के दामन ने जकड़ रखा था, पर सुलेखा ने भी मजबूती से धैर्य के दामन को थाम रखा था. अपने तीनों बच्चों में भी उसने ऐसे ही सुसंस्कारों को पोषित-पल्लवित करने की भरसक कोशिश की थी. बड़ी बेटी का नाम उसने शोभा रखा था. शोभा उसकी एक मालकिन का नाम था, जो बहुत ही भले स्वभाव की थी. उसकी बेटी भी उसके जैसी ही भले स्वभाव की थी. जो मिलता, चुपचाप खाकर संतुष्ट हो जाना उसका सहज स्वभाव हो गया था. छोटी बेटी का नाम उसने हर्षा रखा था. हर्षा उसकी एक मालकिन की बेटी का नाम था, जो हरदम हंसती रहती थी. उसकी बेटी भी हरदम हंसती रहती थी. सुलेखा को लगता था, कि यह नाम का ही प्रभाव था. हाथ तंग होने के कारण वह बेटियों को अच्छा खिला नहीं सकती थी, पर अच्छा नाम रखने में तो कोई खर्चा नहीं ही लगता न! बेटे का भी वह अच्छा-सा नाम रखना चाहती थी, पर उसकी नटखटी के चलते उसका नाम नटू ही पड़ गया था. स्कूल में भी उसका यही नाम दर्ज था. बात-बात पर मचलना उसका स्वभाव बन गया था. आज भी वह पिज्जा-बर्गर के लिए मचल गया था. सुलेखा उसे धैर्य से समझा रही थी, पर जो मान जाए, वह नटू कैसा! तभी दरवाजे पर दस्तक सुनकर सुलेखा ने दरवाजा खोला. सामने उसका पति सुरेश खड़ा था. उसके हाथ में पिज्जा-बर्गर देखकर नटू को तो मानो सब कुछ मिल गया था. सुरेश ने बताया- ”आज हमारे मालिक के बेटे का जन्मदिन था, सो उसने सभी मजदूरों को आज पिज्जा-बर्गर की सौगात दी है.” नटू में आज धैर्य का अवतरण हो गया था, उसने पांच थालियां लगाईं और सबको बराबर-बराबर पिज्जा-बर्गर बांटकर दिया. सुलेखा को लगा धैर्य का अवतरण होने से आज नटू बांटकर खाने-खिलाने वाला नटवरनागर बन गया है.