ग़ज़ल : रूह मे बसाया है
तुम्हें दिल मे ही नहीं, रूह मे बसाया है
तुम्हें ही याद रखा खुद को भी भुलाया है
बड़ी ही बेकरारी रहती हैं अब सुबहो-शहर
दिल ने भी किस तरह के मोड पर फंसाया है
तुमसे है इतने गिले, तुमको पर सुनाऊं कैसे
कब कोई बात मेरी तुमको समझ आया है
जब भी सोचा , अब तुझसे दुर चले जायेंगे
दिल ने आँखो से अपनी मिन्नतें बरसाया है
एक दुआ की तरह होंठो से तु निकलता है
और तुम्हें ताबीज सा सीने फिर लगाया है
बस समझ लो कि तुमसे ही है रौशनी मुझमे
वरना स्याह रात ही मेरी जिंदगी का सरमाया है
चलो फिर प्यार की दुनिया मे घर बनाते है
मैने अरमानो की नींव पहले ही बनाया है
— साधना सिंह