सफ़र
ये जिंदगी का सफर
नहीं होता आसान
चलते-चलते राहों में
आते है कई मोड़ ऐसे
जहाँ खाने पड़ते है
कई ठोकर जख्म भरे
फिर भी ठहरना नहीं
होता है मुमकिन
पर इन अनजाने राहों पर
कभी-कभी मिल जाते है
कुछ दोस्त ऐसे भी किस्मत से
जो हाँथ बढ़ाते है आगे साथ
चलने के लिए
उसका ये साथ मन को
कर देता है बाग़-बाग़
और फिर चल पड़ते है हम
एकसाथ मंजिल की तरफ
एक विश्वास लिए मन में
भले ही हमारी मंजिल अलग हो
पर रास्ते एक ही है
पर क्या था पता वो
अनजान शख्स जिसके
संग चली थी कुछ ही दूरी तक
मंजिल आने से पहले ही
मेरे दिल में बना लेगा अपना घर
और फिर होगी वही से
एक नई सफर की शुरुआत।