कविता : मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
चाहूं स्वतंत्र, उन्मुक्त गगन
भरूँ हौसलों की ऊँची उड़न !
कोई अदृश्य खूँटी न बाँधे मुझे…
कि मैं नारी हूँ ! !
ख्वाहिशें अपनी, सपने अपने
पग बाँधे न बेड़ी, मेरे अपने !
न त्याग की मूर्ति बनना पड़े…
कि मैं नारी हूँ ! !
मैं नव पथ का निर्माण करूँ
चट्टान काट कर आगे बढ़ूँ !
कोई पुरुष पंख न काटे मेरे…
कि मैं नारी हूँ ! !
अंजु गुप्ता