कविता

कविता: अपनी परिधि में…

अपनी परिधि में…
सिमटते, सिकुड़ते !
कई बार चाहा…
इसे तोड़ पाऊँ !
जिम्मेदारियों के बंधन,
जो बाँधे हैं मुझको !
कईं बार सोचा…
उन्हें छोड़ पाऊँ !
न हो कर्तव्यों का बेड़ी,
जो राहें रोके मेरी !
बस अल्हड़पन की हो मस्ती,
नील गगन हो मेरी बस्ती !
बेफिक्र हो करूँ बातें,
करूँ दोस्तों संग मुलाकातें !
पर क्या ये सम्भव है ?
शायद नहीं ! !
हैं ख्वाहिशें थोड़ी ज्यादा,
हिम्मत थोड़ी कम !
हैं जिम्मेदारियां थोड़ी ज्यादा,
खुशियों संग हैं ग़म !
पांवों में पहनी है,
फ़र्ज की जंजीर !
दूजों के लिए जीना,
ही है शायद तकदीर ! !

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed