नोटबंदी कौ आल्हा (ब्रजभाषा में)
शीश नवाऊँ भारत माँ कूँ, नरेन्द्र मोदी जाकौ लाल।
कारे धनवारे चोरन कूँ, जो बनिकै आयौ है काल।।
बड़े नोट सब बंद कर दये, दो नम्बर वारे घबरायँ।
नोटन की गड्डी हैं इतनी, इनकूँ कहाँ खपावैं जाय?
लूट रहे सत्तर सालन ते, पाई टैक्स भरौ नहिं यार।
कच्चे बिल दै गिराहकन कूँ, सारौ खुद ही गये डकार।।
बुरौ होय जा चाय बारे कौ, सारौ रुपया लयौ निकार।
एक नम्बर ते काम चलै ना, ठप्प है गयौ सब व्यौपार।।
बैंक वारेन कूँ दयौ कमीशन, कारे धन कूँ करैं सफेद।
अब पकरे जाविंगे सारे, मोदी जी कूँ मिलिगौ भेद।।
कहाँ जायँ अब चोर बिचारे, रस्ता एक बच्यौ ना कोइ।
खीज निकारैं गारी दैकें, या घर बैठे रहवें रोइ।।
कैसें भुगतें जा मोदी कूँ, ना खावै ना खावन देइ।
दिन में डरैं, रात भर जागैं, सम्पति सारी छीन न लेइ।।
जा ते तौ कांग्रेस भली ई, मैं भी खाऊँ, तू भी खाउ।
गाँधी जी के बन्दर बनिकें, बुरौ न कोई देखै काउ।।
कान पकर लए मैंने भैया, कबउँ न दूँ मोदी कूँ वोट।
कांगरेस कूँ वापस लाऊँ, भले रहें वो कफनखसोट।।
चाहें करैं घुटाले कितने, बस मेरौ धंधौ चलि जाइ।
बिनती है लछमी मैया ते, या मोदी ते लेउ बचाइ।।
— विजय कुमार सिंघल
पौष कृ ३, सं २०७३ वि. (१६ दिसम्बर २०१६)