हरेक बात को हँसकर वो टाल देता है
हरेक बात को हँसकर वो टाल देता है
मगर निगाहों से सबकुछ खँगाल देता है
उसी के शेर जहां में चमकते गौहर बन
ख़यालों के जो हुनर से कमाल देता है
वो आदमी ही सदा कामयाब है होता
जो अपनी कमियों को चुनकर निकाल देता है
न बात कर मेरे दुश्मन की सामने मेरे
कि उसक ज़िक्र ही खूं में उबाल देता है
मैं उसकी कैद से खुद को बचा नहीं पाता
वो जाल जब भी निगाहों के डाल देता है
न पाल पाए वो वालिद को चार होकर भी
मगर इक बाप कई बच्चे पाल देता है
ख़ुदा के दर से कोई लौटता नहीं खाली
ख़ुदा ही सारे जहां को जमाल देता है
— महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
जयपुर
+918511037804