लघुकथा

खोखली व्यवस्था

स्थानांतरण पर जब निखिल अपने शहर वापस आया तो अपने बेटे कमल के दाखिले के लिए अपने पुराने स्कूल का चुनाव किया. छात्रों को संस्कार, मर्यादा एवं अनुशासन का पाठ पढ़ाना ही स्कूल का प्रमुख लक्ष्य था. शिक्षक छात्रों के विकास पर उसी प्रकार ध्यान देते थे जैसे माता पिता देते हैं. यही कारण था कि उसके जैसा औसत छात्र इस मुकाम तक पहुँच सका था.
कमल का स्कूल में दाखिला करा कर वह निश्चिंत था कि उसका बेटा सही हाथों में है. किंतु तिमाही परीक्षा का परिणाम देख वह बहुत निराश हुआ. कमल गणित में फेल था. निखिल ने उसे डांट लगाई “तुम्हारा मन अब पढ़ने में नहीं लगता है.”
कमल सहमते हुए बोला “मैं बहुत कोशिश करता हूँ. पर कुछ पाठ मेरी समझ नहीं आते.”
“तो टीचर से क्यों नहीं पूंछते.”
“मैं पूंछता हूँ तो वह बताते नहीं हैं.” कमल ने अपनी बात रखी.
निखिल को लगा कि वह झूठ बोल रहा है. उसे डांटते हुए बोला “चुप करो. खुद की गल्ती मानने की बजाय टीचर को दोष दे रहे हो.”
कमल चुप हो गया और अपने कमरे में चला गया.
अगले दिन निखिल स्कूल जाकर कमल के गणित के टीचर से मिला और उनसे कमल की समस्या बताई.
टीचर सफाई देते हुए बोले “देखिए क्लास में इतने बच्चों पर ध्यान देना कठिन है.”
“मैंनें तो आप लोगों के हवाले अपने बेटे को कर दिया है. अब आप उसे देखिए.” निखिल ने हाथ जोड़ते हुए कहा.
“ठीक है मैं देखता हूँ कि क्या हो सकता है.”
निखिल नमस्कार कर बाहर आ गया. तभी पीछे से गणित के टीचर की आवाज़ आई “ज़रा ठहरिए.”
निखिल रुक गया. पास आकर गणित के टीचर ने कहा “कमल पर विशेष ध्यान देने की आवश्यक्ता है. यहाँ यह मुमकिन नहीं है.” अपनी जेब से एक कार्ड निकाल कर निखिल को पकड़ा दिया. “कमज़ोर बच्चों के लिए मैं ट्यूशन क्लास चलाता हूँ. आप कमल को वहाँ भेज सकते हैं.” यह कहकर वह चले गए.
वहाँ खड़ा निखिल सोंच रहा था. स्कूल का आदर्श कहीं खो गया था. अब केवल एक खोखली व्यवस्था रह गई थी.

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है