मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

(1)
दर्द जब दिल में समेटा, ग़म हुआ.
दिल बहुत आहत हुआ, बेदम हुआ.
दर्द को जब गुनगुनाया गीत में,
गुनगुनाते-गुनगुनाते कम हुआ.
(2)
आप जब भी याद आये रो दिये.
दर्द जब हम सह न पाये रो दिये.
आप सँग जो पल बिताये याद करके,
गुनगुनाये-मुस्कुराये-रो दिये.
(3)
ज़िन्दगी को मुस्कुराने दीजिये.
मत उसे आँसू बहाने दीजिये.
मौत के कितने बहाने हैं यहाँ,
ज़िन्दगी को कुछ बहाने दीजिये.
(4)
आज जब नज़दीक आकर वो मिले.
और थोड़ा मुस्कराकर वो मिले.
यों लगा जो दरमियाँ थीं दूरियाँ,
आज उन सबको मिटाकर वो मिले.
(5)
बो गया वो बीज मन में प्रीत का.
अब उगेगा एक पौधा गीत का.
जो बड़ा होकर बनेगा वृक्ष फिर,
ग्रीष्म में आनंद देगा शीत का.
(6)
बेवज़ह सबको न ताने दीजिये.
काम कुछ करने-कराने दीजिये.
शूल भी हैं बाग में तो क्या हुआ,
फूल चुनिये शूल जाने दीजिये.
(7)
ख़्वाहिशों के प्यार में भटका किये.
हम सदा बेकार में भटका किये.
कर सके पूरी ख़रीदारी नहीं,
उम्र भर बाज़ार में भटका किये.
(8)
साथ जगते साथ सोते हैं सदा.
साथ हँसते साथ रोते हैं सदा.
तुम ग़लत समझो नहीं हम नैन हैं,
नैन यों नज़दीक होते हैं सदा.
(9)
मीत हूँ तो पास मेरे आइये.
गीत हूँ तो आप मुझको गाइये.
हार हूँ तो आइये दिल जीतिये,
जीत हूँ तो हारकर दिखलाइये.
(10)
शब्द-बाणों से हृदय को वेधना.
चोट लगने पर करें कुछ खेद ना.
किस तरह हम मान लें ज़िंदा उन्हें,
मर गई जिनकी सकल संवेदना.

— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674