ये दिल……गजल
गया है हार उस जालिम से अब फरियाद करके दिल ।
न जाने क्यूँ तड़पता फिर उसी को याद करके दिल ।
कि जिसके नाम हमने तो सभी अपनी खुशी लिख दी ।
मगर वो अश्किया मेरा गया नाशाद करके दिल ।
नज़र साया चुराने अब लगा खुद का ही खुद से क्यूँ ।
वो अपने अक्स से ऐसे गया आबाद करके दिल ।
मैं सजदा कर रही उस वक्त का जब तुम मिले दिलबर ।
मिले अख़लाक से या फिर मिले उफ्ताद करके दिल ।
न हटतीं है निगाहें वो गया जिस राह पर *गुंजन* ।
नमी आँखों गया है दर्द को आजाद करके दिल ।
हमें बुत की तरह जो था मिला हमने मुहब्बत से ।
उसे हँसना सिखा डाला सुनो ईजाद करके दिल ।
— गुंजन ‘गूँज’