सतरंगा नववर्ष
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया
उत्साह, उमंग का साज ले फिर से आ गया
प्रेम की बांसुरी के सुर सजाने आ गया
दरकते रिश्तों की गाँठें खोलने आ गया
दुःख, गम के आँसू पौंछ ख़ुशी देने आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
खुदगर्ज मानव अपनी मनमानी है करे
वन को काट – काट के प्रलय लीला है करे
भू – गगन प्रदूषण से फिर से विषैले हुए
प्रदूषित मौसम चक्र बदल के बेमौसम हुए
वैदिक रस्म से संतुलन देने फिर आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
करना जगतवासियों की आशाएं पूरी
भूखा न सोए जन देना दो वक्त की रोटी
सुप्त चेतनाओं में जागे नारी सम्मान
बन बदली बरसना तुम ! किसानों के जहान
समृद्धि का सूर्य बन जग में फिर आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
दीवारों से हठा कलैण्डर -नया साल सजा
माँ ! ईद , दिवाली, होली किन तिथि में लाया
लेखा – जोखा करो तुम सब पिछले कामों का
क्या खोया – पाया हमने करो अधूरे काम
संकल्प ले ‘मंजु’ नव साल फिर आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
— मंजु गुप्ता