कविता

परिवर्तन की हुई शुरुआत

बात 1968-1972 के आस पास की है

कभी लठ्ठो वाला आये

कभी मूंगफली वाला आये

कभी बायस्कोप वाला आये

कभी चूड़ीहारन आये

कभी मछली वाला/वाली आये

दादी धान या गेंहू से बदल लेती थीं

खेतों में काम करने वाले मजदूर हों

धोबी हो

नाई हो

कुम्हार हो

भुजा भुजवाना हो

अनाज ही पाते देखी या खेत मिला है बोओ खाओ

मजदूरी करो

यानि कैशलेस दुनिया हमने देखी है

असुविधाजनक थी बात

परिवर्तन की हुई शुरुआत

फिर क्यों चल रही हवा घात

कुछ नया देखें तो कोई बात नई लगे

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ