मानवीय तपस्या का साकार रूप “नारी”
नारी कामधेनु है, अन्नपूर्णा है, सिद्धि है, रिद्धि है और वह सब कुछ है जो परिवार के समस्त अभावों, कष्टों एवं संकटों को निवारण करने में समर्थ है। यदि उसे श्रद्धासिक्त सद्भावना,स्नेह ,सम्मान दिया जाए तो वह घर को स्वर्गीय वातावरण से ओत प्रोत कर सकती है।माँ के रूप में उसका वात्सल्य पाकर हमें बोध हुआ है कि नारी सनातन शक्ति है जिसके आँचल से सतत स्नेहसिक्त अमृत रिसता रहता है जिसका पान कर शिशु मानसिक और शारीरिक पोषण प्राप्त कर समाज में श्रेष्ठ और महान व्यक्ति के रूप में अपना स्थान बनाता है |मुझे याद आती है इस भारत भूमि पर मानवीय देह में जन्मी वो महान माताएं जो धरती परईश्वरके अवतार का माध्यम बनी ,धरती पर जब –जब भी ईश्वर का प्रकटीकरण हुआ तो ईश्वर को भी नारी पर ही आश्रित होना पड़ा है रामचरित मानस में तुलसी बाबा लिखते है की जब कौशल्या के भवन में चतुर्भुजी नारायण बालक के रूप में प्रकट होना चाह रहे थे तो माता कौशल्या उनसे कहती है की हे | ईश्वर यदि मेरे गर्भ से जन्म लेना चाहते हो तो सबसे पहले अपने अतिरिक्त दो हाथ लुप्त करो अपने वैभव को समेटो ,छोटे शिशु का रूप धारण करो और फिर रोना शुरू करो ईश्वर को अपनी इच्छानुसार आकार देने की जो क्षमता भारतीय नारी में मिलती है वो विश्व के किसी भी इतिहास में कहीं नही मिलती| कृष्ण जब मिट्टी खाते है तो माँ यशोदा उन्हें ओखल से बाँध देती है ना केवल बाँध देती है बल्कि उन्हे धमकाती है और डांटती भी है | ईश्वरको भी अपनी आज्ञा में चलाने का सामर्थ्य केवल भारत वर्ष की नारी में ही मिलता है ,फिर भी समाज में आज भी वो उपेक्षित है|
जहां तक विकास और पुरुष के समकक्ष होने बात कही जाती है ये केवल स्त्री समाज का एक बहूत छोटा हिस्सा है जो की बहुत संघर्ष और त्याग के बाद विकास कर पाया है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी नारी शोषित , उपेक्षित है | कई सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उठाये स्त्री सतत अपने कर्तव्यों का पालन करने में लगी हुई दिखाई देती है |
यदि आपको एक जीवित मशीन देखना होतो आप विशेषकर सुबह के समय परिवार की महिला को देखिये पति के कपड़ों, बच्चों के नाश्ते, उनके स्कूल बैग , बड़ों की दवाई आदि कार्यों में व्यस्त महिला साक्षात् मशीन दिखाई देती है |जो केवल स्नेह वश बिना किसी स्वार्थ के तत्परता से सबकी सेवा में लगी रहती है , उसे केवल पति की मुस्कान, बच्चों के द्वारा सम्मान और बड़ों के आशीर्वाद की इच्छा गतिशील बनाये रखती है ,फिर भी पुरुष प्रधान समाज नारी के उस समर्पण को समझ नही पता दुर्भाग्य ऐसा की मंदिर में जाकर पत्थर की देवी प्रतिमा को श्रध्दा सुमन अर्पित करेंगे लेकिन घर में जो जीवंत देवी है जिसने परिवार की बागडोर सम्भाल रखी है उसकी उपेक्षा करेंगे यहाँ तक की कोई गलती हो जाने पर उसे खरी खोटी सुनाने से भी नही चुकेंगे | विडम्बना ऐसी है की जिस देवी की प्रतिमा को मंदिर ने सुंदर वस्त्रों से ढंककर उसका सुंदर शृंगार कर अपने श्रद्धा और सम्मान को समर्पित करते है वहीं दूसरी और जीवंत नारी का शील भंग कर उसे समाज में तिरस्कृत जीवन जीने के लिए छोड़ देते है | नारी कब तक इस पुरुष प्रधान समाज के इन घृणित कार्यों को सहन करती रहेगी ?
नारी आदिकाल से उन सामाजिक दायित्वों को अपने कन्धों पर उठाए आ रही है, जिन्हें केवल पुरुष के कन्धों पर डाल दिया गया होता , तो वह न जाने कब का लड़खड़ा गया होता, किन्तु स्त्री आज भी उतनी ही कर्तव्यनिष्ठा, उतने ही मनोयोग, संतोष और उतनी ही प्रसन्नता के साथ उसे आज भी ढोए चल रही है। इसलिए उसे मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा कहना अतिश्योक्ति नही होगा है।
भौतिक जीवन की लालसाओं के प्रवाह को उसी की पवित्रता ने रोका और सीमाबद्ध करके उन्हें प्यार की दिशा दी। प्रेम नारी का जीवन है। अपनी इस निधि को वह अतीत काल से मानव पर न्यौछावर करती आयी है। कभी न रुकने वाले इस अमृत निर्झर ने संसार को शान्ति और शीतलता दी है। ऐसी देवस्वरूप नारी के आत्म सम्मान की रक्षा करना और उसे स्नेह और सम्मान देना हमारा कर्तव्य होना चाहिए |
लेखक :- पंकज “प्रखर”
कोटा (राज.)