धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और युवा आर्य विद्वान डा. रामचन्द्र का गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली में यज्ञ विषयक महत्वपूर्ण सम्बोधन

ओ३म्

देश व आर्यजगत के सुप्रसिद्ध गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के वार्षिकोत्सव में हम 17 व 18 दिसम्बर, 2016 को उपस्थित व सम्मिलित रहे। 18 दिसम्बर 2016 को उत्सव का समापन दिवस था। इस अवसर पर यज्ञ के अनन्तर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं युवा आर्य विद्वान डा. रामचन्द्र जी ने यज्ञों के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किये। जिस समय यह प्रवचन आरम्भ हुआ, हम अन्यत्र व्यस्त होने के कारण उनके सम्बोधन का पूरा विवरण लिख नहीं पाये। कुछ पंक्तियां लिखी हैं जिन्हें हम अपने फेसबुक के मित्रों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।

डा. रामचन्द्र जी ने कहा कि यज्ञ करने से हम परम पिता परमात्मा की सन्तति बन जाते हैं। यज्ञ करके व यज्ञ की भावना के अनुरूप अपना आचरण बना कर हम मानव से महामानव बनने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि इसके लिए जीवन में त्याग भाव की आवश्यकता होती है। यदि यज्ञ के अनुरूप अपने मनोभावों को बनाकर हम उन्हें यज्ञ से जोड़ कर यज्ञ करेंगे तो इससे विशेष प्रकार की शान्ति मिलेगी। यज्ञ करने वालों के लिए यज्ञ में उच्चारित होने वाले मन्त्र संजीवनी बन जाते हैं जब हम यज्ञ के मन्त्रों के अर्थों को जानकर उनके द्वारा यज्ञ में आहुति देते हैं और साथ ही उनका अपने आचरण में प्रयोग भी करते हैं।

यह पंक्तियां डा. रामचन्द्र जी के सम्बोधन की अन्तिम पंक्तियां है। आरम्भ का कुछ भाग नोट नहीं कर सके जिसका हमें खेद है।

हम आशा करते हैं कि पाठकों को यज्ञ का उपर्युक्त सन्देश प्रेरणादायक प्रतीत होगा। हम यह बता दें कि वैदिक धर्म व संस्कृति में गृहस्थियों सहित ब्रह्मचारियों व वानप्रस्थियों के लिए प्रातः सूर्यादय व उसके पश्चात् तथा सायं सूर्यास्त से पूर्व दैनिक यज्ञ करने का विधान है। यह दैनिक यज्ञ महायज्ञ कहलाता है। यज्ञ का अर्थ देवपूजा, संगतिकरण व दान है। यज्ञ के इस अर्थ में मनुष्य के जीवन की सार्वत्रिक उन्नति का रहस्य छिपा है। यज्ञ मनुष्य की सभी प्रकार की कामनाओं को भी पूरा वा सिद्ध करते हैं। यज्ञ के महत्व पर आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी की पुस्तक यज्ञ मीमांसा’ पठनीय है। यह भी ध्यातव्य है कि महर्षि दयानन्द के अनुसार जो पंच महायज्ञ नहीं करता वह पापी होता है। महर्षि दयानन्द ने यज्ञ न करने के कारण पाप कैसे होता है, इसके ठोस हेतु प्रस्तुत किए हैं। इसके लिए उनका सत्यार्थग्रन्थ पठनीय है।

मनमोहन कुमार आर्य