चौराहा
है मन चौराहे सा
विचारों के कई अनगिनत रास्ते
भटकन सी मन के भीतर
द्वन्द्व विचरता है क्षुब्ध
फिर भी सही गलत की पेशोपेश
निरन्तर चलती मैं
इन वैचारिक राहों से निकल पाना चाहूँ
पर है पथरीली राहें
कदम दर कदम
दूर होती मंजिलों को पाने की हौड़ में
चौराहे पर भटकती
अर्न्तमन की चाह।
— अल्पना हर्ष