गजल
दर्द दिल का लिखूं या मुहब्बत लिखुँ।
कुछ शिकायत लिखूं या इनायत लिखूँ।
सोच पे हैं लगे आज पहरे कई
फिर बताओ तो कैसे बगवात लिखुँ।
खूबसूरत हैं लम्हे कई साथ के
तू बता भी ये कैसे नजाकत लिखुँ।
वक़्त की भीड़ में खो न जाना कहीं
रंग बदले जमाना सियासत लिखूँ।
गूँजती ही रहूंगी हृदय में तेरे
फिर बता भी तो कैसे जलालत लिखूँ
…..गुंजन अग्रवाल