कविता

घर मेरा है बादलों के पार ….

दिन-रात

सुबह -शाम

भोर -साँझ

कुछ नहीं बदलते

दोनों समय का नारंगीपना…..

उजली दोपहर

अँधेरी काली आधी रात हो

सब चलता रहता है

अनवरत सा ….

सब कुछ

वैसे ही रहता है

बदलता नहीं है !

किसी के ना होने

या

होने से ….

फिर क्यों

भटकता है तेरा मन

बंजारा सा

दरवाजा बंद या

है खुला

क्यों झांक जाता है तू !

क्यों ढूंढ़ता है मुझे

गली-गली ,

नुक्कड़-नुक्कड़ !

यहाँ

मेरा कोई पता है ना

ना ही कोई ठिकाना ….

घर मेरा है

बादलों के पार !

मिलना है तो फैलाओ पर

भरो उड़ान,

चले आओ ….

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।