मेरी कहानी 192
एक तो मैं बार बार गिर पढ़ता था, दुसरे मेरी आवाज़ बदल रही थी। गिरने का तो मुझे इतना धियान नहीं था लेकिन सभी कह रहे थे कि मेरी आवाज़ बदल गई थी, इस लिए मैंने डाक्टर से अपॉएंटमेंट बना ली थी। जब मैं सर्जरी में पहुंचा तो मेरी अपनी डाक्टर मिसज़ रिखी नहीं थी। उस की जगह लोकम डाक्टर मिस्टर मैहता था। डाक्टर मैहता भी बहुत अच्छा था। उस को मैंने अपनी आवाज़ के बारे में बताया कि सभी यही कह रहे थे कि मेरी आवाज़ में फर्क आ गया है। मैहता साहब हंस कर बोले कि यह सब उम्र बढ़ने के कारण हो रहा था और इस में घबराने वाली बात कोई नहीं थी। मैं घर आ गया लेकिन मेरे मन में अभी भी कोई चिंता की बात नहीं थी। फिर धीरे धीरे मैं महसूस करने लगा कि मेरे हाथों में वोह शक्ति नहीं थी जो पहले थी, चलता भी था तो लगता था जैसे मैं कोई बोझ उठाये जा रहा हूँ। सर्दी में बाहर जाता तो ऐसे अकड़ कर चलता जैसे मेरे घुटनों का ऑपरेशन हुआ हो। यह सब इतना धीरे धीरे हो रहा था कि मुझे पता ही नहीं लगा कि मैं किसी रोग से ग्रस्त हूँ। ऐसे ही दो साल बीत गए और अब कभी कभी मैं घर में ही अचानक गिर जाता। मेरी खुराक शुरू से ही बहुत अछि रही है और कुछ कुछ एक्सरसाइज़ की आदत मुझे शुरू से ही थी लेकिन इन चीज़ों से कोई फर्क नहीं पढ़ रहा था। ऐसे ही दो साल बीत गए। जब मेरा गिरना ज़्यादा हो गया तो मैं और कुलवंत डॉक्टर मिसज़ रिखी की सर्जरी में पहुंचे और उस को सब कुछ बताया। मिसज़ रिखी ने कुछ टैस्ट किये। यह टैस्ट ऐसे थे जैसे पार्किंसन रोग के होते हैं। मिसेज़ रिखी ने कहा कि सब ठीक है और मैं एक कोलैस्ट्रोल की गोली जो मैं हर रोज़ लेता था, उस ने कहा मैं वोह गोली बन्द कर दूँ क्योंकि मेरा कोलैस्ट्रोल बिलकुल ठीक था। डाक्टर की सर्जरी से हम बाहर आ गए।
धीरे धीरे मेरे हाथों की शक्ति इतनी कम हो गई कि मेरी हैंडराइटिंग में भी फर्क पढ़ने लगा। ज़्यादा लिख ना होता और अक्षर उतने अच्छे लिख ना होते। ऐसे ही तीन साल बीत गए और मेरे खुशकिस्मती यह रही कि घर से बाहर अब तक मैं गिरा नहीं था । जितनी दफा भी गिरा घर के अंदर ही गिरा। अब मेरे खाने की शक्ति भी कम होने लगी और साथ ही मेरी जीभ भी भारी होनी शुरू हो गई। कई दफा खाते खाते फ़ूड मेरे गले में ही फंस जाती और सांस रुक जाता। बढ़ी मुश्किल से खाना अंदर जाता। एक दिन घर बैठे बैठे मेरी गरदन में और सर के दाईं ओर इतना दर्द शुरू हो गया कि असह्न्य हो रहा था। रात का वक्त था, संदीप मुझे सीधा हस्पताल ले गया। जब वहां पहुंचे तो एमरजेंसी पेशैंट हमारे पहले भी बहुत थे, कुछ तो बहुत ही सीरियस थे। दो घंटे बाद मुझे बुलाया गया और डाक्टर ने बहुत से टैस्ट किये। आखर उन्होंने नथिंग सीरियस और स्पॉन्डेलाइट्स कह कर,पेन किलर दे कर मुझे रुखसत कर दिया। घर आया तो पेन किलर से कुछ राहत हुई। अब ऐसा हो गया कि जब मैं चलता तो बहुत संभल कर चलता क्योंकि मुझे महसूस होने लगा था कि मेरा बैलेंस खराब हो रहा था। आखर मैं फिर डाक्टर के पास पहुंच गया और सब कुछ बताया। डाक्टर ने सोच कर हॉस्पिटल को चिठ्ठी लिख दी। कुछ हफ्ते बाद मुझे हस्पताल से खत आ गया और मैं बस पकड़ कर हस्पताल जा पहुंचा। मेरी अपॉइंटमेंट निओरो सर्जन डाक्टर बैनमर से थी। डाक्टर बैनमर बहुत ही कुआलिफाइड निओरोलॉजिस्ट है और उस की एक टीम है, जिस में कुछ अन्य नियोरोलॉजिस्ट भी हैं।
बैनामर ने मुझे अपने दोनों हाथों की उंगलियों से नाक को टच करने को कहा, जो मैंने आसानी से कर दिया। फिर उस ने मुझे चलने को कहा और पीछे से हलके से धक्का दिया लेकिन इस से मैं गिरा नहीं, फिर उस ने जीभ बाहर निकालने को बोला, बैठ कर खड़े होने को बोला, सब ठीक था। जितने टैस्ट किये, देख कर उस ने मुझे डिस्चार्ज कर दिया। उस के हिसाब से अभी मैं ठीक ठाक था लेकिन बाद में इस बात की मुझे समझ आई कि वोह यह ही देखता था कि मुझ में किया तबदीली आ रही थी। घड़ी की सूइयों की तरह धीरे धीरे मैं कमज़ोर हो रहा था। अब मैं बाहर जाता तो अपनी छतरी ले जाता और छतरी को पकड़ कर चलता, छड़ी मैं इस लिए नहीं पकड़ता था कि मुझे छड़ी से शर्म आती थी, यह हमारे समाज में एक ऐसी बात है कि इस को पहले पहले इस को पकड़ने से सभी कतराते हैं, पता नहीं क्यों। अब डाक्टर के पास जाना हो या हस्पताल तो जसविंदर मुझे ले जाती और वोह मेरा एक हाथ पकड़ लेती क्योंकि मुझे गिरने का डर होता था। एक दिन मैं घर में ही गिर पड़ा और मैं रोने लगा। संदीप मुझे पकड़ कर मुझे सांत्वना दे रहा था और कह रहा था DAD YOU ARE MAKING IT WORSE ! लेकिन मुझे से रोना कंट्रोल नहीं हो रहा था कि यह मुझे क्या हो रहा था, मेरी ज़िन्दगी STAND STILL हो रही थी। अब तो मेरे ज़िन्दगी का लुत्फ लेने के दिन थे, क्योंकि सारी उम्र तो काम में ही गुज़र गई थी, अभी तो मैंने पोतों के साथ मस्ती करनी थी और अब मैं अछि तरह बोल ही नहीं सकता था।
अब संदीप फिर मुझे डाक्टर के पास ले गया और सब कुछ बताया। मिसेज़ रिखी ने फिर बैनमर को खत लिखा। अपॉएंटमेंट आने पर हम बैनमर की सर्जरी में पहुंचे। कोई दस मिंट बाद बैनमर मुझे बोला, ” I WILL SEE YOU IN QUEEN ELIZBETH HOSPITAL BIRMINGHAM ” और हम वापस आ गए। कोई एक महीने बाद मुझे कुईन एलिज़बेथ हस्पताल से खत आ गया। मैं कुलवन्त और संदीप हस्पताल जा पहुंचे और मैं हस्पताल में एडमिट हो गया। कुलवंत और संदीप वापस आ गए और मुझे बैड मिल गई जिस के साथ ही मेरे कपडे और अन्य चीज़ें रखने के लिए एक कैबनिट रखी हुई थी। यह मार्च 2008 साल था और बर्फ पडी हुई थी। पच्छमी देशों के हस्पताल की कोई रीस नहीं, सुन्दर बैड शीट, सुन्दर नरम नरम चिट्टे तकिये और पीछे नर्स को एमरजेंसी बुलाने के लिए एमरजेंसी बैल और बैठ कर लेटे लेटे ही देखने के लिए टीवी और कोई फिल्म ऑर्डर करनी हो तो टेलीफोन करके मन पसंद फिल्म देख सकते थे। टिप टिप करती करती घूमती हुई परियों जैसी नर्सें, आधा दुःख तो ऐसे वातावरण से ही दूर हो जाता है, फिर इन नर्सों की मीठी मीठी बोल चाल, एक सकूं सा मिल जाता था। मेरे पास की बैड पर एक 35 वर्षय गोरा था जिस को ऐपीलैप्सी की तकलीफ थी। सामने की बैड पर एक पचास वर्षय गोरा था जिस को मेरे जैसी ही शकायत थी। एक पैंतीस चालीस वर्ष जमैकन था जो उठ नहीं सकता था, पता नहीं उस को किया तकलीफ थी।
बैड पर बैठा मैं टीवी देख रहा था। एक फिल्म देखि। फिर घर को टेलीफोन किया कि मेरे लिए कुछ किताबें और मैगज़ीन लेते आएं क्योंकि हस्पताल में वक्त काटना बहुत मुश्किल होता है। एक नर्स आई और हर एक को रात का मैनिऊँ पकड़ा गई और जो जो चीज़ किसी ने लेनी थी, उस पर टिक्क कर देना था और साथ ही दूसरे दिन सुबह का मैनिऊँ भी था । यूँ तो इंडियन खाने भी उपलब्ध थे लेकिन वोह अपने घर जैसे नहीं होते, इस लिए मैंने इंग्लिश खाने ही टिक्क कर दिए। पांच बजे खाने की ट्रॉली आ गई और एक गोरी सभी के टेबलों पर जिन के नीचे पहिये थे गर्म गर्म खानों की ट्रे रखने लगी। ट्रे घसीट कर मैंने बैड के नज़दीक कर ली और खाने लगा। कहने की बात नहीं कि इंग्लिश खानों में तड़के और तेज़ मसाले ना होने के बगैर भी बहुत स्वादिष्ट थे। खाने के बाद हर रोज़ एक स्वीट डिश होती थी जो बहुत मज़ेदार होती थी। खाना खाने के कुछ देर बाद गोरी खाली ट्रे ले गई। एक बात है कि हस्पताल में इतनी सहूलत होते हुए भी वक्त काटना बहुत मुश्किल होता है। कुछ देर हस्पताल में रखे मैगज़ीन पढता रहा। सात बजे विजटिंग टाइम था, जब सभी लोग अपने प्रिय बीमार लोगों को देखने आते हैं। कुलवंत और सभी बच्चे भी आ गए और हम बातें करने लगे। कुछ किताबें मैगज़ीन संदीप ले आया था। हंसते बातें करते करते पता ही नहीं चला कब वक्त बीत गया और सारे हस्पताल में घंटी बज गई और सभी उठ कर बाहर जाने लगे। रात को सो गिया। बहुत जल्दी सुबह मेरे नाक में हिलजुल सी होने से मुझे जाग आ गई। एक वेस्ट इंडियन डाक्टर मेरे दोनों नथनों में कौटन बड्ड डाल कर स्वब्ब ले रहा था। यह एक प्रकार का टैस्ट है, जो सुबह को सोते समय लिया जाता है। डाक्टर के जाने के बाद मैं फिर सो गया। स्नान आदी से नविरत हुआ तो ब्रेक फास्ट आ गया, जिस में कौरन फ्लेक्स, बटर बन और साथ एक छोटी सी टिकिया बटर और छोटी सी टिकिया मामलेड की थी। साथ ही जुइस का छोटा सा कार्टन था। खा कर पेट भर गया और अब टी लेडी आ गई थी, टी या कॉफी सब को बोल रही थी। हर कोई अपना पसंदीदा ड्रिंक ले रहा था। यह खाने और चाय वाली लेडीज़ बहुत हंसमुख होती हैं। साथ साथ लोगों से बातें भी करती रहती हैं, इसी तरह इस वार्ड में भी थीं।
कोई गियारा बारह बजे एक नर्स ब्लड लेने आ गई। पांच छै शीशीयां उस ने भरीं और अपना सामान ले कर चलती बनीं। एक बात है कि हस्पतालों में किसी को कोई जल्दी नहीं होती, सब पेशैंट रिलैक्स हुए अपनी अपनी बैड पर लेटे हुए होते हैं या बैड के पास रखी कुर्सी पर बैठे कोई मैगज़ीन या किताब पढ़ रहे होते हैं, जिस का मन चाहे वोह टीवी देखता रहता है। मन पसंद फिल्म देखनी हो तो पास रखे टेलीफोन से ऑर्डर की जा सकती है लेकिन इस के लिए पैसे देने होते हैं। सब पेशैंट एक दूसरे से बातें भी करते रहते हैं। हर रोज़ एक दफा डाक्टर आते हैं और बैड के साथ पडी पेशैंट रिपोर्ट पड़ते हैं। किसी का बीपी हाई लो हो या तापमान कम लो हो तो नर्सों को इंस्ट्रक्शन दे देते हैं। हर पेशेंट का ब्लड प्रेशर तो हर रोज़ तीन दफा चैक करते हैं। आज सारा दिन बार बार नर्स आ कर ब्लड ले जाती रही। मैंने हंस कर नर्स को कह दिया कि वोह तो मेरा सारा खून निकाल लेगी ! वोह हंस कर बोली, डौन्ट वरी मिस्टर भामरा, हैव ए कप्प ऑफ टी, इट विल बैलेंस अप्प क़ुइकली। अब ऐसे ही रूटीन शुरू हो गया। एक दिन दो नर्सें आईं और एक बोली, मिस्टर भामरा, आई वांट टू सी हाउ स्ट्रॉन्ग यू आर। फिर उस ने मुझे साइड के भर होने को बोला। नर्स ने बोला, ” इस को बैक पंचर कहते हैं, बैक बोन में पंचर करके हम ब्रेन फ्लूअड लेंगे, यह ब्रेन फ्लूअड अमृत की भाँती पियोर होता है “, फिर उस ने मेरी बैक बोन में जोर से सूई डाल दी, मुझे इतनी दर्द हुई कि मैंने अपने दांतों को भींच लिया। दो मिंट तक वोह फ्लूअड निकालती रही। इस के बाद सूई निकालके उस ने पीठ पर प्लास्टर लगा दिया। वैल डन भमरा कह कर उस ने मुझे वोह फ्लूअड की भरी शीशी मुझे दिखाई जो बहुत ही साफ़ पानी की तरह दिखाई देता था। हैव ए रैस्ट कह कर नर्सें चली गईं। पास की बैड पर पड़ा गोरा बोला कि उस का यह टैस्ट एक हफ्ता पहले हुआ था और कई दिनों तक उस को दर्द होता रहा था।
अब दो तीन दिन तक कोई टैस्ट नहीं हुआ और कुछ ही दिनों में मेरे पीठ की दर्द भी ख़तम हो गई। एक दिन दुपहर को बूआ निंदी और उस की पत्नी मुझे देखने आ गए और साथ में बहुत सा फ्रूट, एक लुकूज़ेड की बोतल भी ले आये। ज़्यादा लोगों को हम ने बताया नहीं था। मैं नहीं चाहता था कि किसी को खामखाह परेशान करूँ। मैंने अपनी बेटियों को भी नहीं बताया था। ऐसे ही एक हफ्ता बीत गया और डाक्टर ने सभी नौन अर्जेन्ट पेशैंट को बता दिया कि अगर हम चाहें तो शनिवार और रविवार, दो दिन के लिए घर जा सकते हैं क्योंकि इन दो दिनों में नौन अर्जेन्ट केसों को देखने डाक्टर नहीं आते थे। इस लिए मैंने भी संदीप को टेलीफोन कर दिया कि वोह आ कर मुझे ले जाए। संदीप आ कर मुझे घर ले आया और मुझे बहुत ख़ुशी हुई। हस्पताल में तो अछि तरह नींद भी नहीं आती क्योंकि सारी रात नर्सें आती जाती रहती हैं और ब्लड प्रेशर चैक करती रहती हैं। यह दो दिन मज़े के गुज़रे। चलता. . . . . . . .