धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

“धर्म के सहयोग से आत्मा की लक्ष्य प्राप्ति”

जय श्रीकृष्ण: 22-12-016
“धर्म के सहयोग से आत्मा की लक्ष्य प्राप्ति”

धर्म के मुख्यतः दो आयाम हैं. एक है संस्कृति, जिसका संबंध जगत संसार से है. दूसरा है अध्यात्म, जिसका संबंध भीतर आत्मा से है. धर्म का तत्व भीतर आत्मा मे व्याप्त है. मत,विचार व्यक्तित्व बाहर है.तत्व और मत दोनों मिलकर धर्म है. तत्व के आधार पर मत का निर्धारण हो, तो धर्म की सही दिशा होती है.
लेकिन धर्म तत्व क्या है?
धर्म का उद्गम क्या है?
कहाँ पहुँचना है हमें ?
गंतव्य कहाँ है?
हम परमात्मा की संतान है .तो क्यों दीन-हीन और दरिद्र जैसा जीवन जीना ? क्यों अशांत होना ? क्यों दुःखी होना ? अपना स्वरूप हम भूल गए हैं. करीब-करीब ऐसे ही हम जीवन जीते हैं ,अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर.
हमारा वास्तविक स्वरूप शांत ,प्रेममय तथा सात्विक है.
आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में सबन्ध क्या है- इस विषय का नाम अध्यात्म है . आत्मा और परमात्मा दोनों एक ही है.ये भौतिक पदार्थ नहीं हैं. इन्हें आँख से देखा नहीं जा सकता, कान से सुना नहीं जा सकता, नाक से सूँघा नहीं जा सकता, जिह्वा से चखा नहीं जा सकता, त्वचा से छुआ नहीं जा सकता.लेकिन इनका “अस्तित्व प्रभाव” दृश्य है .जिसे नकारा भी नहीं जा सकता .हमारी आत्मा दिखाई नहीं देती लेकिन वो हमारे शरीर मे मौजूद है तभी तो हम जीवित दिखते है .आत्मा और परमात्मा दोनों ही अजन्मा व अनन्त हैं. ये न कभी पैदा होते हैं और नही कभी मरते हैं, ये सदा रहते हैं.परमात्मा अनंत है लेकिन आत्मा जो की शरीर मे व्याप्त है उसका अंत है .अर्थात शरीर का अंत है और आत्मा का अगला सफ़र शुरू होता है .जब तक हम अपने वास्तविक स्वरूप को जानने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक ये आत्मा शरीर बदलती रहेगी .और परमात्मा से मिलन संभव नहीं हो पायेगा .जो की हर आत्मा का परम लक्ष्य है .ऐसे मे मानव शरीर ही ऐसा है जिसे आत्मा को मोक्ष दिलाने का अवसर मिला है . इसलिए “धर्म तत्व” जानना जरूरी है .मानव कल्याण के लिए ‘धर्म का उद्गम” हुआ .और इन धर्मों के सहयोग से ही हमे हमारे “गंतव्य” तक पहुंचना है .
ऐसे मे ,जीवन मे हमारे जो भी उत्तरदायित्व है ,उन्हे पूरा भी करना है .हमारे कर्तव्य पूरे करना भी धर्म ही है .साथ साथ आत्मा के मोक्ष का मार्ग भी तैयार करना है .जिसने धर्म का मार्ग अपनाया है उन्हे परीक्षाएँ अवश्य देनी पड़ती है ,लेकिन वे लोग उत्तीर्ण भी होते है. क्योंकि जो धर्म की रक्षा करता है धर्म भी उसकी रक्षा करता ही है .
हमारे शास्त्र हमे धर्म के बारे मे बताते है ,की हमारी जीवन शैली ,हमारा रहन-सहन ,खान-पान , व्यवहार कैसा हो .इसलिए शास्त्रों का अध्ययन अति आवश्यक है .जिस तरह शरीर के लिए भोजन अति आवश्यक है उसी तरह आत्मा के लिए अध्यात्म की खुराक अति आवश्यक है.और जीवन मे आनंद तभी आएगा जब आत्मा मे आनंद होगा .शरीर के माध्यम से ही आत्मा को सुख और दु:ख की अनुभूति होती है .इसीलिए आत्मा के मोक्ष का माध्यम भी ये शरीर ही है .
अत: अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान कर जीवन को धर्ममय बनाने का प्रयास करें तो आत्मा अवश्य आनंदित होगी .

—–प्रतिभा देशमुख

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .