सांँझ ढ़ले
साथी चलो चले,
खुले गगन के तले।
भटके बिना वजह,
सबको लगा गले।।
घर बार छोड़कर,
ममता को तोड़कर।
ले खेल खिलौने,
दु:ख चौखटे रोककर।।
माँ रोकेगी दिन में,
छुपके निकलेंगे सांझ में।
चलेंगी मस्तीयां अपनी,
खिले जब चांद गगन में।।
गेंद फेंके चलो गगन,
माँ से अनुमति ले मगन।
चलेगें साथ मिलकर हम,
देखने चाँद का चमन।।