गीत/नवगीत

गीत “रावण सारे राम हो गये”

गाँव-गली, नुक्कड़-चौराहे,
सब के सब बदनाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।

रामराज का सपना टूटा,
बिखर गया हर पत्ता-बूटा।
जिसको मौका मिला उसी ने,
खेत-बाग-वन जमकर लूटा।
हत्या और बलात् कर्म अब,
जन-जीवन में आम हो गये।।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।

असरदार सरदार मिले हैं,
लुटे-पिटे घर-बार मिले हैं।
भोली-भाली जनता को बस,
भाषण लच्छेदार मिले हैं।
लोकतन्त्र के मन्दिर में अब,
राजतन्त्र के काम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।

जनसेवक मनमानी करते,
केवल अपनी झोली भरते।
कूटनीति दम तोड़ रही है,
सीमाओं पर सैनिक मरते।
सोनचिरैया के सब गहने,
पलपभर में नीलाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।

गंगा रोती, गइया रोती,
पण्डित जी की पूजा रोती,
देख सपूतों की करतूतें,
घर में बैठी मइया रोती।
“रूप” देखकर चरवाहों का,
कंस आज घनश्याम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।

— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है