सीखना
सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत निरंतर चलती रहती है। आदमी जितना अधिक सीखता जाता है उतना ही अपना अज्ञान उसे मुखर होकर दिखाई देने लगता है। अज्ञानी या अल्प ज्ञानी स्वयं को बहुत विद्वान समझता है। जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है वैसे-वैसे ही समझ आता है कि हम महासागर को चम्मच से उलीचने का दुष्कर कार्य साधने का प्रयास कर रहे हैं। अनंत जन्मों के अथक प्रयत्नों से भी ये संभव न होगा। महान यूनानी दार्शनिक सुकरात ने एक बार ये घोषणा कर दी कि मुझसे बड़ा अज्ञानी इस पृथ्वी पर और कोई नहीं है। कृपा करके कोई मुझे विद्वान कहने की भूल न करे। तब उस समय के ज्ञानी महापुरुषों ने कहा कि आखिरकार सुकरात ज्ञान के नगर में प्रविष्ट हो ही गया। मनुष्य को सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। हर आयु, हर स्थान, हर समय सीखने के लिए उपयुक्त होता है। इस संसार का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है ये जीवन स्वयं और इस विद्यालय के शिक्षक हैं समय, परिस्थितियाँ एवं हमें मिलने वाले व्यक्ति। जीवन प्रतिपल हमें कुछ ना कुछ सिखा रहा है। अगर मनुष्य अाँखों और कानों के साथ-साथ दिमाग भी खुला रखे तो कोई व्यक्ति हो या परिस्थिति हमें कुछ ना कुछ सिखाते ही हैं। इसे ही हम जीवन का अनुभव कहते हैं। कुछ अनुभव सुखद होते हैं और कुछ दुखद। प्रायः देखा गया है कि बुरा समय, बुरी परिस्थितियाँ एवं बुरे व्यक्ति हमें अधिक सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। सुख का अधिकांश समय तो उसका आनंद लेने में ही निकल जाता है। हम हर प्रकार से लापरवाह हो जाते हैं एवं ये सोचते हैं कि ये समय सदा ऐसा ही रहेगा। परंतु समय कभी एक सा नहीं रहता। जैसे हर दिन के बाद रात का आना तय है वैसे ही सुख के बाद दुख का आना अवश्यंभावी है। यदि हम सुख को अस्थाई जानकर उससे कुछ सीखने का प्रयत्न कर अपने आप को आने वाले दुख के लिए तैयार करते रहेंगे तो दुख हमें ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगा। जीवन में अच्छा बुरा जो भी मिले उसे सहज रूप से स्वीकार करके उससे कुछ न कुछ ग्रहण करने वाला मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है।
मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।