यह जिन्दगी!
जिन्दगी का यह,
कैसा खेल
कभी खुशी रहती है
कभी आता है गम
अन्तर्मन में अन्तर्द्वन्द्व
दे जाता है,
एक ऐसी पिड़ा,
जो असहनीय,
हृदय तल पर
उपस्थित।
एक समय की सीमा में
आबद्ध हो जाता है।
जीवन में विद्यमान,
बिखरीं हुई घटनाओं को
एक सूत्र में
क्रमबद्ध करते हैं।
पृथक विछिन्नता
चित्र उपस्थित।
कर जाती है
यह जिन्दगी!!!!
@रमेश कुमार सिंह /20-10-2016