कविता

“कुंडलिया”

घाट घाट पानी पिया, खड़ी नाव मँझधार

हर दिन मांझी बदलता, नई नई पतवार

नई नई पतवार, घाट नदियां बहुतेरे

मंजिल लगती दूर, सिकुड़ती माथ लकीरे

गौतम कहना मान, मिले नहि सबको ठाट

दुर्लभ है बहुमान, मिले कब घाट से घाट॥

 

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ