ब्लॉग/परिचर्चा

बुलंद हौसले को कोई नहीं रोक पाया है: कुलवंत

कुलवंत जी, जन्मदिन (25 दिसम्बर) मुबारक हो

 

कहते हैं-
”कॉर्निया ही मानव शरीर का एकमात्र ऐसा हिस्सा है, जहां रक्त की सप्लाई नहीं होती है. यह सीधे हवा से ऑक्सिजन ग्रहण करता है.”

 

 

”ऐसे ही खुद पर विश्वास रखने वाली महिला शक्ति समाज से नहीं, सीधे परमात्मा से ग्रहण करती है.” यह मानना है, कुलवंत जी का, जिनका आज जन्मदिन है. यह तो आप जानते ही होंगे, कि कुलवंत जी गुरमैल भाई जी की अर्द्धांगिनी हैं. वही गुरमैल भाई जी, जिनका नाम गूगल पर लिखकर सर्च करने से उन पर पूरे 11 पेज आ जाते हैं. आज हम कुलवंत जी के बुलंद हौसले के बारे में कुछ बात करते हैं.

 

 

कुलवंत जी ने सालों पहले पढ़ा था-
”रास्ते खुद मंजिलों तक ले जायेंगे तुमको,
हौसला रखो बुलंद न तुम नाकारा बनो.”
इन्हीं पंक्तियों से कुलवंत जी को हौसला बुलंद रखने में सहायता मिलती है. खुद पर पूर्ण विश्वास के साथ ही कुलवंत जी परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखती हैं. उनका मानना है- ”भगवान की कथाएं महज सुनने से नहीं, बल्कि उनको जीवन में उतारने की जरूरत है. जो प्रभु की इच्छा का पालन करता है, उस पर प्रभु विशेष कृपा करते हैं.” यही तो असली राज़ है उनकी हौसला-बुलंद ज़िंदगी का.
समय की धारा ने भले ही उन्हें आज इंग्लैंड पहुंचा दिया हो, पर उनकी पैदाइश भारत भूमि की शान पंजाब के गांव की है. 1946 में आज ही के दिन कुलवंत जी का जन्म हुआ था. इसी पंजाब की उपजाऊ धरती पर गुरमैल जी के साथ उनकी प्रेम-गाथा भी विकसित हुई थी. दोनों के दादा जी ने इस रिश्ते पर मुहर लगाई थी, उसके बाद इनका मिलना-जुलना चलता रहा. वह ज़माना साइकिलों का था. दोनों ने साइकिलों पर ही अपने प्रेम की पींगें बढ़ाई थीं, जिसका खूबसूरत वर्णन गुरमैल भाई ने अपनी आत्मकथा -‘मेरी कहानी’ में बखूबी किया था. अभिभावकों की स्वीकृति के बाद खूबसूरत प्रेमपत्र भी चलते रहे, जो आज भी इनकी प्रेम-गाथा को ताज़ातरीन बनाए रखते हैं.

 

 

इसी बीच गुरमैल भाई इंग्लैंड आ गए थे, 1967 में विवाह के बाद कुलवंत जी भी इंग्लैंड आ गईं. यहां उन्होंने अपनी भारतीयता को बनाए रखते हुए पश्चिमी संस्कृति से पूरा तालमेल बिठाया. इंग्लैंड में जन्मे अपने बच्चों को वहां की संस्कृति के साथ-साथ भारतीय संस्कृति से भी जोड़े रखा. दोनों के परिवारों के धन-सम्पन्न होते हुए भी गुरमैल भाई की इच्छानुसार उनकी शादी बहुत ही सादे ढंग से हुई थी, उन्होंने अपने बच्चों की शादियां भी यथासम्भव बिना किसी अधिक आडम्बर व दिखावे के कीं, हां सुसंस्कारों का दान-दहेज भरपूर दिया, तभी बेटियों-दामादों का और बेटे-बहू और नाती-पोतों का भरपूर प्यार-सम्मान उन्हें आज भी मिल रहा है.

 
कुलवंत जी की ज़िंदगी सपाट चलती रही हो, ऐसी बात नहीं है. सभी की तरह उन्हें भी कई संकट-बाधाओं का सामना करना पड़ा. कुलवंत जी ने पहले तो ROSE FROM THE GRAVE, यानी बहुत गंभीर डिप्रेशन पर फतह हासिल की. इसमें गुरमैल भाई के खोजे-बताए नुस्खों पर चलते हुए, उन्होंने डिप्रेशन से छुटकारा पाया और आज से बीस साल पहले उनको डॉक्टर ने कहा था, कि वह व्हील चेअर में पड़ जाएगी की डॉक्टर बात को झुठला दिया है, भगवान की कृपा से सब अच्छा चल रहा है.

 

 

 

बच्चों के छोटे होने पर भी कुलवंत जी ने बहुत-सी कपड़े की फैक्ट्रियों में बखूबी काम किया. 70 साल की होने पर विदेश में आज भी वे अपने सूट खुद सिलती हैं, अपने और सखियों और उनके बच्चों के लिए स्वेटर भी बुनती रहती हैं. 1998 में उन्हें स्टेट पेंशन मिल गई, लेकिन वे बेकार नहीं बैठीं. दोनों पोतों का पालन-पोषण किया, कुछ बड़े हुए तो उन को स्कूल छोड़ने जाना और ले आना भी बहुत ज़िम्मेदारी से निभाया. बड़ा पोता चार साल हुए सैकंडरी स्कूल में जाने लगा, इस साल सितंबर से छोटा भी जाने लगा है और कुलवंत की स्कूल लाने-ले जाने की ज़िम्मेदारी तकरीबन ख़तम ही हो गई है. स्नेहिल दादा-दादी के पोते अब भी स्कूल से आ कर पहले उनके यहां ही आते हैं और कुलवंत जी उन के लिए खाना तैयार करके रखती हैं. बेटा-बहू काम से आने के बाद खाना खा कर बच्चों को लेकर अपने घर चले जाते हैं.

 
बच्चों की देख भाल के साथ-साथ ही 15 साल हुए कुलवंत ने लेडीज़ कम्युनिटी सेंटर जॉएन कर लिया था, जिस का नाम है हमजोली ग्रुप. यह ग्रुप हफ्ते में दो दिन होता है. पहले कुलवंत की सखी रशपाल यह ग्रुप चलाती थी, फिर कुलवंत जी भी उन के साथ हो लीं, क्योंकि लेडीज़ ज़्यादा आने लगी थीं. ये सभी महिलाएं रिटायर हो चुकी हैं. कुलवंत-रशपाल मिलकर महिलाओं के लिये तरह-तरह के कामों का प्रबंध करती हैं. सब त्योहार, जैसे लोहड़ी, दशहरा, दीपावली, क्रिसमस आदि मनाती हैं. कभी-कभी कोई महिला आकर लेडीज़ को योग कराती हैं. कई बार काउंसिल की ओर से भी कोई आकर सेहत के बारे में बताता है. कभी किसी साल टाऊन के मेयर को बुलाया जाता है और वह इन के साथ समोसे-पकौड़े खाता है. गर्मियों के दिनों में ये दोनों सखियां लेडीज़ को कोई सीसाइड या ऐतिहासक जगह ले जाती हैं.

 

 

इस सब के साथ-साथ कुलवंत जी ने वाकिंग ग्रुप भी जॉइन किया हुआ है और हफ्ते में दो-तीन बार वे पॉर्क में सखियों के साथ वाक करने जाती हैं, जिस के लिए कभी-कभी साल बाद मेयर सब सखियों को टाउन बुला कर उन की अचीवमेंट के लिए सर्टिफिकेट दे कर उनका सम्मान करता है और सारी सखियां मेयर के साथ खड़ी हो कर फोटो खिंचवाती हैं.

 
कुलवंत जी के बुलंद हौसले की एक और गाथा आज से लगभग 14 साल पहले शुरु हुई, जब गोवा-भ्रमण के समय गुरमैल भाई को एक लहर समुद्र में बहा ले गई, दूसरी लहर ने उनको किनारे पर तो ला दिया, लेकिन उनको शारीरिक रूप से लगभग अपंग-सा कर दिया. यहां गुरमैल भाई के बुलंद हौसले ने भी उनकी परीक्षा ली और कुलवंत जी ने भी अपने बुलंद हौसले से उनकी तीमारदारी की. आज दोनों के बुलंद हौसले का परिणाम है- गुरमैल भाई की आत्मकथा मेरी कहानी के 190 एपीसोड प्रकाशित होना, जिसकी 8 ई.बुक्स बन चुकी हैं. इसके लेखन का श्रेय भी कुलवंत जी को जाता है. बहुत साल पहले गुरमैल भाई ने कागज़ों पर ‘मेरी कहानी’ लिखनी शुरु की, जब उन्होंने कम्प्यूटर पर लिखना चाहा, तो कुलवंत जी ने बड़े जतन से सहेजकर रखे हुए वे कागज़ लाकर दिए और इच्छा करते ही ‘मेरी कहानी’ कम्प्यूटर पर उतरने लगी.

 

कुलवंत जी के बुलंद हौसले को एक ब्लॉग में समेटना बहुत मुश्किल है. उन्होंने अपने को रेडियो से भी जोड़ रखा है. लाइव रेडियो पर वे चुटकुले भी सुनाती हैं और भारतीय भोजन की रेसिपी भी सिखाती हैं. गुरमैल भाई कहीं बाहर आ-जा नहीं पाते, कुलवंत जी हर फंक्शन में जाती हैं और घर आकर उनको इतना चटपटा आंखों देखा हाल सुनाती हैं, कि गुरमैल भाई को वहां जाने की कमी नहीं खलती है. कहने का तात्पर्य यह है, कि अपने बुलंद हौसले से कुलवंत जी ने घर-बाहर अपने को पूर्णतः स्वस्थ और सक्रिय बना रखा है. कुलवंत जी को उनके 70वें जन्मदिन, बुलंद हौसले और उज्ज्वल भविष्य के लिए कोटिशः शुभकामनाएं.

 

 

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कुलवंत जी, जन्मदिन के उपहार-स्वरूप आपको और गुरमैल भाई जी को हम सहर्ष गुरमैल भाई द्वारा लिखी ‘मेरी कहानी’ की ई.बुक-8 भेज रहे हैं-

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244