लघुकथा

फ्लेट नम्बर 303

रात होने आई, छोटू घर नहीं पहुंचा तो पिता
रामू चिंतित हो दोस्तों से पूछ रहा था तो मालूम हुआ कि छोटू के साथ उसके और दोस्त भी घर नहीं पहुँचे थे, बस्ती वालों में अफरा तफरी मच गई कि कुछ बच्चे बस्ती से गायब हैं अचानक रामदीन हाँफता हुआ आया और बोला, ” बस्ती के मालिक को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, दिवाली के लिए कुछ बच्चों से गैरकानूनी तरीके से पटाखों का काम करवा रहा था।”
तभी बस्ती के सामने वाली बिल्डिंग से चीख पुकार सुन सभी बस्ती वाले पहुंचे तो लोगों ने कहा कि ,”फ्लेट नंबर 303 में धमाका हुआ है और वहाँ से बच्चों की चीखें आ रही हैं।” पुलिस के साथ बस्ती के मालिक को देख, रामू को समझते देर न लगी।
“अरे ! कहीं हमारे बच्चे तो नहीं ?” रामू चिल्लाया ।
सभी दौडते हुए 303 में पहुंचे तो चारों तरफ जिगर के टुकडों के लहुलुहान चिथडों के सिवाय कुछ नहीं था, भयानक रूप से रूदन और चीखें पसर गई ।

तभी भीड का हिस्सा बना इक शख्स बोला, “लालाजी आपने तो अपने अंदर की इंसानियत को ही मार दिया, कोई कैसे अमानुषिकता की हदें पार कर स्वयं के फायदे के लिए मासूमों की जिंदगी की आहुतियाँ दे सकता है ….?”
संयोगिता शर्मा
सेंट लुइस

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।