…..बस निर्भया
…..बस निर्भया
भूल गए वो निर्भया को
हुई वह बात पुरानी ।
अश्क की धारा बही है यूं
है करूण बड़ी ये कहानी ।
जुल्म-सितम की हुई है इंतहा
फूलों सी वो मसल दी गई ।
देवासन भी डोला है तब
जब-जब अबला जो कोई कुचल दी गई ।
बिन इजाजत छुआ किसीने
सारी मर्यादा को लांघा है ।
अपने पापों से कलंकित कर
नर्क की सुली पर उसे टांगा है ।
मौन बैठे हुए हैं सब
जानें किस भय और इंतजार में ?
यहां रोज लूट रही है अबला
चंद पागलों के व्यभिचार में ।
समाज की कुरीतियों ने भी
अजब सितम ढाया है ।
जो पहले से घायल बैठी थी
उसी पे दर्द का बादल छाया है ।
जिसने किया है दोष
उसको कुछ न कहते हैं ।
सच को बनाकर झूठ
वे आराम से जग में रहते हैं ।
जिसकी खुशी को लूटा है
सपनें जिसके तारतार हुए ।
दोषी बन जी रही है वो
आंखों से जिसके आंसुओं के बौछार हुए ।
तुम्हारी हर एक चीख का
हिसाब सबको देना होगा ।
ना बदला समाज का नजरिया जो
तुम्हे खुद चंडी का रूप लेना होगा ।
खुदखुशी का पथ छोड़कर
तुम्हे खुद को साबित करना है ।
बिखरे सपनों को जोड़कर
राज समाज पे तुम्हे करना है ।
मुकेश सिंह
सिलापथार,असम
9706838045⇔