कविता

कविता : शक

हक़ दिया तुमने पूरा मुझे , तभी शक होता यार
मुँह ना मोड़ मुझसे तू यू , देख तू मेरा वो प्यार

किसी छोटी बातों से न , हो यूँ हमेशा ही उदास
दुरियाँ हो तो क्या हुआ , हु तो दिल के ही पास

जो भी मिला तुमसे मुझे , रखा उसे ख़ूब संभाल
मिलेंगे जब रूबरू हम , मसले कर लेंगे सब हल

सबक़ ले हम उस चाँद से , जो है बोहोत ख़ास
दूर बहोत होकर भी है , नज़दीक जैसा आभास

मजबूरियाँ होसकती , कुछ तेरी कुछ मेरी सनम
वरना सोचो की , कैसे एक दूसरे से जुदा है हम

दूर रहेने से कूच पल का , ‘शक’ तो होता राज
दिल में प्यास भी बड़ती , और याद आती रोज़

प्रिय प्रेमी के फ़ैसले पर , भला ‘शक’ कैसे करुँ
दे रहा गर सज़ा कुछ तो , गुनाह रहा होगा मेरा

✍?..राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक

राज मालपाणी ’राज’

नाम : राज मालपाणी जन्म : २५ / ०५ / १९७३ वृत्ति : व्यवसाय (टेक्स्टायल) मूल निवास : जोधपुर (राजस्थान) वर्तमान निवास : मालपाणी हाउस जैलाल स्ट्रीट,५-१-७३,शोरापुर-५८५२२४ यादगिरी ज़िल्हा ( कर्नाटक ) रूचि : पढ़ना, लिखना, गाने सुनना ईमेल : [email protected] मोबाइल : 8792 143 143