कविता

शुभ हो नया साल…

सौंपकर अपनी सारी जिम्मेदारियां
दो हजार सत्रह को
अलविदा कह रहा हैं साल
दो हजार सोलह
देकर चंद जरूरी हिदायतें
शुभकामनायें भी अनगिनत कि
हो मंगलमय आने वाला नया समय
न आये कोई भी कठिनाई
जो हल हो न सके
मुस्कुराकर विदा कर रहा सत्रह
अपने उस जन्मदाता को
जिसने उसे नवजीवन दिया
हमें भी करना देखभाल इस नवजात की
जिसने अभी आँखें भी न खोली
महज़ वादा नहीं करना
न ही लेना झूठे संकल्प
बस, हरदम ये कोशिश करना
कि निर्धारित किये जो भी लक्ष्य इस हेतु
वो इसके अगले जन्मदिन तक पूर्ण हो
ये कोई असाध्य काम तो नहीं ।।

डॉ इंदु सिंह ‘इंदुश्री’, नरसिंहपुर

डॉ. इन्दु सिंह

नाम : डॉ इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ पता : नरसिंहपुर (म.प्र.) ई-मेल : singh_indu2008@yahoo.com शिक्षा : M.Phil. (Computer Science), MCA, M.Sc.(IT), M.Sc.(Botany), PGDCA, DCA, B.Sc. (Bio) सम्प्रति : व्याख्याता (कंप्यूटर साइंस) प्रकाशन : ------------ ‘सारांश समय का’(साँझा काव्य संग्रह), कविता अनवरत-3 (साँझा काव्य संग्रह), काव्यशाला(संयुक्त काव्य संकलन), साज़ सा रंग(साँझा काव्य संग्रह), सिर्फ तुम(साँझा कहानी संग्रह), भावों की हाला (सयुंक्त काव्य संकलन) , सृजन-शब्द से शक्ति का , 100 कदम , शब्दों का प्याला, विभिन पत्र-पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों में कविता / कहानी / आलेख और रचनायें प्रकाशित तथा कुछ नये शीघ्र प्रकाशित होने वाला साँझा काव्य-संग्रह । सम्मान : ------------ ★ 'विद्यासागर' विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर (बिहार) द्वारा । ★ ‘विद्या वाचस्पति’ विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर (बिहार) द्वारा । ★ ‘वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई साहित्य गौरव सम्मान अखंड भारत परिवार, नई दिल्ली द्वारा । ★ ‘साहित्य गौरव’ वर्तिका साहित्य परिषद, जबलपुर द्वारा । ★ 'साहित्य नवचेतना सम्मान' अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा । ★ साहित्यिक सेवा हेतु माँ भारती मानव सेवा संस्था, नरसिंहपुर द्वारा सम्मानित । ★ 'शब्द शक्ति सम्मान' राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा । अपने बारे में : ------------------ बालपन से ही साहित्यिक कृतियों के प्रति एक रुझान, एक सहज आकर्षण महसूस हुआ जिसने हमेशा अपनी और खिंचा उन्हें पढ़ते-पढ़ते पता ही नहीं चला कि कब रगों में अलफ़ाज़ घुल गयें जब कभी सफों पर कुछ भी लिखा तो पाया कि वो कभी किसी ‘कविता’ में ढल गये तो कभी कोई ‘कहानी’ बयां कर गये... शब्द धीरे-धीरे रूह में बसने लगे जो मन के भाव बन उँगलियों की पोरों से स्याही के रास्ते कलम से निकलने लगे जिन्हें ‘डायरी’ में लिखती रही, समाज़ में होने वाले परिवर्तनों, देश-दुनिया की घटनाओं ने भी लिखने के लियें प्रेरितकिया जिससे विचारों व लेखनी में भी परिपक्वता आने लगी... अपने उन्हीं ज़ज्बातों से सभी को रु-ब-रु कराने हेतु विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में भी उन्हें भेजा जहाँ से बड़ी ही सकारात्मक प्रतिक्रिया और सराहना मिली जिसने उत्साहवर्धन किया और इस तरह शौकिया तौर पर किया गया लेखन जीने की वजह ही बन गया । लिंक : FACEBOOK - https://www.facebook.com/induprofile BLOG - http://www.antarveena.blogspot.in