बातें तो कई हैं, मगर….!
साधना के उपाय हैं,
मगर साधना नहीं
नीति के अमूल्य वचन हैं,
तो आचरणा का नहीं
शांति की बातें रटते हैं
हमेशा गरम खाते रहते।
छाता की छाया में
श्रम का गीत गान है
राष्ट्रीय एकता की चिल्लाहट है,
झंडे की वंदना करते नहीं
समानता का सबब
जात-पाँत के साथ है
जीवन की चर्चा है,
एक पल का भी
दृष्टि अंतरंग की ओर नहीं
आगे-आगे चलते हैं,
अव्वल दर्जे का जीवन
सीधे-सादे रास्ते पर नहीं
अच्छे पकवानों पर हाथ फिरते
रूचियों की प्रशंसा है,
अन्नदाता की पहचान नहीं
यह प्रगति का जमाना है,
वस्तुओं के साथ बिताते
प्राणिकोटि प्रकृति से नहीं
हर बात की चर्चा है,
मानव मूल्यों का स्थान नहीं
नकली ज्यादा चमकीला है
असली पड़ गयी फ़ीका।
सुख-भोग की लालसा में
अपने आपको धोखा देते हैं
यह हमारी पीढ़ी है
आगे की पीढ़ि और अलग ।