कविता

बातें तो कई हैं, मगर….!

साधना के उपाय हैं,
मगर साधना नहीं
नीति के अमूल्य वचन हैं,
तो आचरणा का नहीं
शांति की बातें रटते हैं
हमेशा गरम खाते रहते।
छाता की छाया में
श्रम का गीत गान है
राष्ट्रीय एकता की चिल्लाहट है,
झंडे की वंदना करते नहीं
समानता का सबब
जात-पाँत के साथ है
जीवन की चर्चा है,
एक पल का भी
दृष्टि अंतरंग की ओर नहीं
आगे-आगे चलते हैं,
अव्वल दर्जे का जीवन
सीधे-सादे रास्ते पर नहीं
अच्छे पकवानों पर हाथ फिरते
रूचियों की प्रशंसा है,
अन्नदाता की पहचान नहीं
यह प्रगति का जमाना है,
वस्तुओं के साथ बिताते
प्राणिकोटि प्रकृति से नहीं
हर बात की चर्चा है,
मानव मूल्यों का स्थान नहीं
नकली ज्यादा चमकीला है
असली पड़ गयी फ़ीका।
सुख-भोग की लालसा में
अपने आपको धोखा देते हैं
यह हमारी पीढ़ी है
आगे की पीढ़ि और अलग ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।