हास्य व्यंग्य

मैं जब भ्रष्ट हुआ (व्यंग्य )

मेरी नियुक्ति जब एक कमाऊ विभाग में हुई तो परिवार के लोगों और सगे – संबंधियों को आशा थी कि मैं शीघ्रातिशीघ्र भ्रष्ट बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ जाऊंगा लेकिन आशा के विपरीत जब मैं एक दशक तक भ्रष्ट नहीं हुआ तो सभी ने एक स्वर से मुझे कुल कलंक घोषित कर दिया I मुझे तरह -तरह की उपाधियों से विभूषित किया जाने लगा – मिस्टर क्लीन, सत्यवादी हरिश्चंद्र, कलियुग के कृष्ण, कुलघाती आदि I परिवार से लेकर राज्य सचिवालय तक मैं चर्चा का केंद्रीय विषय बन गया I अलग-अलग विचार और मान्यता वाले सभी लोग इस बात पर एकमत थे कि मुझे भ्रष्ट बन जाना चाहिए I लोगों के लिए मैं आठवां आश्चर्य था I लोग कहते कि आखिर इस काजल की कोठरी में निष्कलंक रहने वाला किस लोक का प्राणी है I मैं किसी की बातों पर ध्यान नहीं देता, स्वयं में मस्त रहता I धीरे -धीरे आश्चर्य का विषय न रहकर मैं विवादों का केंद्र बन गया I बिना कारण कुछ अधिकारियों की वक्र दृष्टि का शिकार होने लगा I मौखिक चेतावनी, स्पष्टीकरण, अनुशासनिक कार्रवाई की धमकी मेरे लिए सामान्य बात हो गई I स्थिति जब निलंबन तक आ पहुंची तब मैंने फैसला किया कि मैं अब भ्रष्ट बनूंगा और अपने ऊपर लगे अभ्रष्ट के कलंक को मिटा दूंगा I मैंने सोचा, मैं भी देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाऊं I यही हितकर और कल्याण का मार्ग है I
नौकरी के ग्यारहवें वर्ष में मैं अपने विभाग के एक क्लर्क द्वारा भ्रष्टाचार में दीक्षित हुआ I उसने भ्रष्टाचार के उदभव और विकास की सविस्तार कथा सुनाई तथा भ्रष्ट होने के लाभ और अभ्रष्ट बने रहने की हानियों से परिचित कराया I एक दशक के अनुभवों ने मुझे भी परिपक्व और सयाना बना दिया था I मेरे भ्रष्ट होने पर लोगों ने राहत की सांस ली I घर में आनंद उत्सव मनाया जाने लगा I मित्रों ने बधाइयां दी गोया मैंने भ्रष्टाचार का आविष्कार किया हो I विभागीय सहकर्मियों ने कहा कि अब यह बंदा अपनी बिरादरी में शामिल हो गया है I मेरे भ्रष्ट होने पर सभी ने अपनी मौन सहमति की मुहर लगाई I मित्रों -संबंधियों से लेकर ऊपर के अधिकारियों ने कहा कि अब यह सुधर गया है I मेरे भ्रष्ट बनने पर मेरी अभ्यर्थना की गई, नागरिक अभिनंदन किया गया और कई साहित्यिक संस्थाओं ने मेरे ऊपर अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया क्योंकि अब मैं उन्हें चंदे की मोटी रकम दे सकता था I अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं ने मुझे आचार्य, महामानव, पंडित आदि उपाधियों से मंडित कर स्वयं को गौरवान्वित किया क्योंकि मैं उन जेब चालित संस्थाओं को दान देने लगा था I इस प्रकार मेरा भ्रष्ट होना एक राष्ट्रीय उत्सव बन गया I मैं भी ऐसा भ्रष्ट निकला कि भ्रष्टाचार ही ओढ़ने- बिछाने लगा I मैं जितने हस्ताक्षर करता उसकी गिनती के अनुसार मुद्रा ग्रहण करता I फाइल मेरे लिए लहलहाती फसल थी और दफ्तर में आनेवाला हर आगंतुक उस फसल में खाद -पानी डालने वाला किसान I मैं मुद्रा उगाही के एक सूत्री कार्यक्रम के पालन में इस कदर डूबा कि अपने- पराए के बोध से ऊपर उठ गया I मेरी समरूप दृष्टि में मित्र -शत्रु के लिए रिश्वत की राशि में एकरूपता थी I सरकारी नियम -कानून की चिंता किए बिना मैं मुद्रा मोचन के पतितपावन कर्म में आकंठ डूब गया I मैं जब मदिरा मस्त होकर दोनों जेबों में कागज स्वरूपा लक्ष्मी को भरकर घर पहुंचता तो परिवार के लोग मुझे अपने सर -आंखों पर बिठा लेने को तत्पर दिखते I मेरे बच्चे मुझसे जब ईमानदारी का अर्थ पूछते तो मैं उन्हें ईमानदारी का अर्थ असंतुलित दिमाग का फितूर बताता I जब बच्चे मुझसे नैतिकता का मतलब जानना चाहते तो मैं उसका अर्थ गरीबों के मनबहलाव का सस्ता तरीका बता देता I बच्चों को मेरे कथन पर संदेह होता तो वे शब्दकोशों का सहारा लेते, पर आश्चर्य कि शब्द कोशों के आधुनिक संस्करणों से ये शब्द गायब थे I
देशभर में भ्रष्टाचार उन्मूलन सप्ताह मनाया जा रहा था I सभी सरकारी विभागों में धूमधाम से भ्रष्टाचार उन्मूलन सप्ताह मनाने का आदेश आया था I मेरे कार्यालय में भी यह सप्ताह धूमधाम से मनाया गया I मैंने कर्मचारियों को संबोधित किया –
“भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की तरह खाए जा रहा है I इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य है कि भ्रष्टाचार रूपी राक्षस को मिटाने के लिए आज से ही कमर कस लें I जब तक भ्रष्टाचार रहेगा तब तक देश का विकास नहीं हो सकता है I भारत भूमि महान ऋषियों और संतों की पुण्यभूमि रही है I इसके गौरव को अक्षुण्ण रखना हमारा दायित्व है I आइए ! आज से ही हम सब यह व्रत लें कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे I “ भाषण समाप्त करने के बाद मेरी नजर लाल रंग के कपड़े पर सुनहरे अक्षरों में अंकित बैनर पर गई तो मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाया I भूलवश बैनर पर उन्मूलन शब्द लिखा ही नहीं था I मोटे – मोटे अक्षरों में ‘भ्रष्टाचार सप्ताह’ अंकित था I सभा समाप्त होने के बाद मेरे कुछ सशंकित सहकर्मी मिलने आए I मेरे सारगर्भित और अलंकृत भाषण को सुनकर उनके रिश्वतजीवी मन को संदेह हो गया कि शायद मेरा पुराना पागलपन लौट रहा है I मुझे उन लोगों पर तरस आ रहा था, ये कैसे भ्रष्टाचारी हैं कि एक मात्र भाषण को सुनकर इनका बेईमान मन डोल रहा है I मैंने उन्हें भ्रष्टाचार के यथार्थवाद और अस्तित्ववाद की सोदाहरण -सप्रसंग व्याख्या करते हुए समझाया कि उत्तर आधुनिक काल में दो ‘भकार’ ही सत्य हैं – भगवान और भ्रष्टाचार, शेष सब मिथ्या है I भगवान की तरह भ्रष्टाचार भी सर्वव्यापी है, यह बालू खरीद से लेकर जहाज खरीद तक अपनी भूमिका निभाता है I भ्रष्टाचार अजर -अमर है, स्वयं प्रकाशमान है I इसे मिटाने के लिए सुर -नर –मुनियों ने अथक प्रयास किए परंतु यह तो रक्तबीज है I ईश्वर की तरह यह अशरीरी है I इसे देखा नहीं जा सकता, महसूस किया जा सकता है I जो भ्रष्ट हैं वे पूज्य हैं, उपास्य हैं, स्तुत्य हैं I जो अभ्रष्ट हैं उपेक्षणीय हैं, दंडनीय हैं I जिस प्रकार गिरगिट को देख गिरगिट रंग बदलता है उसी प्रकार भ्रष्ट को देख अभ्रष्ट भी भ्रष्ट हो रहे हैं I मैं भी प्रातः स्मरणीय भ्रष्टाचारी गुरुओं की तरह भ्रष्टाचार के क्षेत्र में अभिनव कीर्तिमान स्थापित करना चाहता हूं I मैं भी भ्रष्टाचार के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने का अभिलाषी हूं I इसीलिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं –
भ्रष्टाचार में लिप्त निरंतर करूं देश की सेवा I
नित नूतन इतिहास रचूं, यह वर दो मेरे देवा II

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]