कविता : आसमां के नाम…
यू ही खिड़की पे बैठे बैठे,
सुबह से शाम कर दी,
जैसे अपनी ज़िंदगी उस,,
आसमां के नाम कर दी,
वो मुझे मै उसे बस देखती रही,
खामोशी मे ही बातें उससे करती रही,
जाने क्यों आसमां उदास था,
कुछ बूँदे जब गिरी उसकी आँखो से,
तो छूकर उन्हें एहसास हुआ,
कि कोई दर्द उसके भी पास था,
उसकी जिंदगी मे भी कोई खास था,
मैने पूछा क्या हुआ है तुम्हें,
उसने बूँदो की धार तेज कर दी,
उस दिन आसमां रात भर रोया था,
शायद उसने अपना प्यार खोया था,
सुबह उसकी आँखो की बरसात कम थी,
फिर भी उसकी आँखें थोड़ी नम थी,
उस दिन भी आसमां खिला नही,
शायद आज भी अपनी मुहब्बत,
से वो मिला नही,
बादल बनकर आसमां का दर्द,
जब जब सामने आता है,
बनकर वो बारिस जमीं पे बरसता है,
फिर लोगो का दिल भीगने को तरसता है,
बारिस मे भीगकर सबके,
होठो पे मुस्कान छा जाती है,
आसमां भी मुस्कुरा उठता है,
उनकी “मस्तानी” खुशी देखकर,
भूल जाता है अपना गम,
उनकी हँसी देखकर,
आसमां गहराई मे,
छुपा के दर्द खिला होता है,
इसलिए “तन्वी” हमारा वो,
आसमां नीला होता है!
— तन्वी सिंह