मेरी कहानी 196
कुलवंत की इंडिया यात्रा के बाद ज़िन्दगी पहले की तरह चलने लगी। इंडिया रहकर जो जो काम हमने करने चाहे थे, वोह कुलवंत ने मुकमल कर दिए थे और हम बेफिक्र हो गए थे। दिन पहले की तरह बीतने लगे। 18 या 19 जुलाई होगी। हर रोज़ की तरह शाम को, शाम का खाना खा के मैं सो गया। कोई एक घँटे बाद मुझे अचानक जाग आ गई, मेरे पेट में जोर की दर्द होने लगी। नाभि के दाईं ओर दर्द इतनी तेज़ होने लगी कि सहना मुश्किल हो गया। कुलवंत ने सौफ अजवायन इलायची डाल कर चाय बनाई, पीने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। दर्द बढ़ती ही जा रही थीं। संदीप ने ऐमर्जेसी डाक्टर को फोन किया लेकिन वोह दो घंटे बाद आया। आते ही उस ने मुझे अछि तरह चैक अप्प किया। मेरा पेट बहुत सख्त हो गया था, पत्थर की तरह। डाक्टर ने अपनी सोच के मुताबिक मुझे जुलाब के लिए दवाई दे दी लेकिन कई घंटे बाद भी ना तो मुझे शौच जाने की इच्छा महसूस हुई और न ही मेरी दर्द कम हुई। दो दिन ऐसे ही बीत गए। डाक्टर को टेलीफोन करते तो वोह दवाई जारी रखने को कह देता। जब तीसरा दिन हो गया और मेरी दर्द कम नहीं हुई तो कुलवंत डाक्टर मिसज़ रिखी की सर्जरी में चले गई और सब कुछ बताया। मिसज़ रिखी शाम को सर्जरी बन्द करके मुझे देखने आ गई। जब उस ने मुझे चैक अप्प किया तो उस ने सीधा हस्पताल को ऐम्बुलेंस के लिए टेलीफोन कर दिया और साथ ही एक पेपर पर मेरा नाम और सारी डीटेल लिख कर हमें दे दी और हमें समझाया कि जब ऐम्बुलेंस आये तो यह रिपोर्ट ऐम्बुलेंस वालों को दे देना। मिसज़ रिखी की समझ में आ गया था कि मुझे किया तकलीफ थी। मैं भूल ना जाऊं, अब मिसेज़ रिखी रिटायर हो गई है और अपनी बेटी के साथ रहती है क्योंकि उस के पति बहुत वर्ष हुए भगवान् को पियारे हो गए थे और उस की बेटी जो खुद डाक्टर है, ही उसके लिए सब कुछ है। आज मैं ज़िंदा हूँ तो सिर्फ मिसज़ रिखी की वजह से, वरना एक दो दिन में ही मैं इस दुनिआं से रुखसत हो जाने वाला था।
मिसज़ रिखी चले गई। उसके जाने के बाद एक घँटे बाद ऐम्बुलेंस आ गई। ऐम्बुलेंस में ड्राइवर के साथ एक आदमी और था। वीह्ल चेअर ले के दोनों घर के अंदर आ गये। कुलवंत ने मेरे कपड़ों का बैग पहले ही तैयार कर लिया था। रात के कोई आठ नौ बजे होंगे। उन्होंने मुझे वीह्ल चेअर में बिठाया और घर के बाहर ले आये। ऐम्बुलेंस की लिफ्ट पीछे के दरवाज़े पर थी। उन्होंने लिफ्ट ऑन कर दी और जब नीचे आ गई तो वह वीह्ल चेअर को धकेल कर ऐम्बुलेंस के अंदर ले आये। ड्राइवर अपनी ड्राइविंग सीट पर आ गया और उस के असिस्टेंट ने लिफ्ट ऑन करके इसको अंदर ले आया और पिछली डोर बन्द कर दी। इस के बाद उस ने मेरे मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा दिया। दोनों गोरे बहुत अच्छे थे और मेरे साथ बातें भी कर रहे थे। इन ऐम्बुलेंस वालों को बहुत ट्रेनिंग मिली हुई होती है और इन को हर तरह के पेशेंट को संभालने की शिक्षा मिली होती है। न्यू क्रॉस हस्पताल ज़ियादा दूर नहीं था, बीस मिंट में हम हस्पताल पहुँच गए। इन दोनों ने बड़ी हिफाज़त से मुझे वीह्ल चेअर में बिठाया, वीह्ल चेअर को रैंप पर रख कर बटन दबाया और वीह्ल चेअर नीचे ज़मीं पर थी। अब यह दोनों वीह्ल चेअर को धकेल कर हस्पताल के भीतर ले आये। रिसैप्शन के काउंटर पर क्लर्क लड़कियां बैठी थी। ऐम्बुलेंस वालों ने सारे डाक्यूमेंट्स उन लड़कियों को दे दिए। कुछ देर बाद एक और वीह्ल चेअर ले कर गोरा आया और मुझे उस में बिठाकर एक जगह ले आया और मुझे एक कमरे में एक चेअर पर बिठा कर चले गया। एक नर्स ने आ कर मुझ से कुछ सवाल पूछे जो मुझे याद नहीं और फिर वोह एक और वीह्ल चेअर में बिठाकर एक छोटे से कमरे में मुझे ले आई, यह छोटा सा कमरा सिर्फ मेरे लिए ही रिजर्व कर दिया गया था, जिस में एक बैड थी और बैड के साथ मेरे कपडे रखने के लिए छोटी सी कैबनेट थी। इसी कमरे में एक छोटे से कमरे में टॉयलेट और शावर नहाने के लिए था। कुछ देर बाद एक डाक्टर आया और उस ने मुझे अछि तरह चैक अप्प किया, बहुत से सवाल पूछे जो मुझे अब याद नहीं, जाहर है, कैसे दर्द हुआ, क्या खाया था, ऐसे ही होंगे। रिपोर्ट लिख कर उस ने कहा कि पहले वोह ऐम आर आई स्कैन करेंगे और वोह चले गया।
मुझे कुछ पेन किलर दे दिए गए थे और पेन किलरज़ से पेन कुछ कम हुई थी और मैं बैड पे लेट कर एक मैगज़ीन पड़ने लगा। अभी तक खाने के लिए मुझे कुछ भी दिया नहीं गया था और ना ही मुझे भूख थी। कोई आधे घंटे बाद एक नर्स ट्रॉली ले कर आई, जिस पर लेटने के लिए बैड थी। उस ने पकड़कर धीरे धीरे मुझे ट्रॉली पे लेटा दिया और मुझे उस कमरे की ओर ले चली यहां मेरा एमआरआई स्कैन होना था। जब कमरे में पहुंचे तो दो नर्सों ने मुझे ट्रॉली से उतार कर स्कैन करने वाली बैंच पे लेटा दिया। एक नर्स ने स्विच ऑन किया और बैंच पीछे की ओर जाने लगी और मेरा सर उस गोल मशीन के नीचे आ गया, यहां मेरा स्कैन होना था। फिर उस ने मेरा पेट उस गोल मशीन के नीचे कर दिया। उस ने मुझे कुछ इंस्ट्रक्शन्ज़ भी दी थी, जो मुझे याद नहीं। कुछ देर बाद जब स्कैनिंग हो गई तो दो नर्सों ने फिर मुझे पहले वाली ट्रॉली पे लेटा दिया और वोह ही नर्स मुझे मेरे कमरे में छोड़ आई और जाती हुई मुझे बता गई कि डाक्टर स्कैनिंग की रिपोर्ट देखकर मेरे कमरे में आएगा और मेरे साथ डिस्कस करेगा। इसी दौरान मेरे पेट में गड़बड़ होने लगी और टॉयलेट जाने की जबरदस्त इच्छा हुई। यह भी हम ने अच्छा किया था कि घर से आते वक्त मैं अपना थ्री वीह्लर वॉकिंग फ्रेम भी ले आया था। बड़ी मुश्किल से मैं टॉयलेट तक पहुंचा और मेरे कपड़े काफी खराब हो गए। दरअसल जो एमरजैंसी डाक्टर घर पर बुलाया था, उस ने जुलाब के लिए दवाई दी थी, जिस का असर अब हुआ। यह जो मैं लिख रहा हूँ, उस समय को याद कर एक घिन और बेबस्सी की बात याद आ जाती हैं। एक तो मेरा चलना मुश्किल, दूसरे पेट की हालत को सम्भालना मुश्किल, मुझे भय सा लग रहा था की नीचे फर्श पर गिर ना जाऊं, अगर मैं गिर गया तो मुझे उठाएगा कौन। एमरजेंसी बैल मैं इसलिए बजाता नहीं था की जिस हालत में मैं था, मुझे खुद से शर्म आ रही थी।
शौच से फ़ार्ग हो कर मैंने अपने आप को टिशू पेपर से साफ़ करना शुरू किया लेकिन टिशू पेप्परों से किया होता, यहां तो हाल ही बुरा था। भाग्य से मेरे वॉकिंग फ्रेम के बैग में बड़ा सा किचन रोल था। अब मैंने नीचे के सारे कपडे उतार दिए और धीरे धीरे शावर हैड से अपने आप को धोया। इस के बाद मैं फ्रेम की मदद से वापस अपनी बैड के नज़दीक आया और वहां पड़े बैग में से नए कपडे निकाले। कपडे मैंने बैड पर रख दिए और एक बड़ा कैरिअर बैग जिस में कपडे थे, उस को खाली करके फिर टॉयलेट में आ गया। सारे गन्दे कपडे इस बैग में डाले और फ्लोर को धीरे धीरे किचन रोल के पेपरों से साफ़ किया। अछि तरह तसल्ली करके मैं अपनी बैड के नज़दीक आ के नए कपडे पहन लिए और निढाल सा हो कर मैं बैड पे लेट गया। ज़िन्दगी में इतना कुछ सहा था और अब मुझे सिर्फ इस बात से तसली हो रही थी की मैंने अपने आप को साफ़ करके, कपडे पहन लिए थे। इंसान की कैसी विडम्बना है, की आज मुझे सिर्फ इस बात से तसल्ली हो रही थी की जिस हालत में अभी अभी मैं था, इस की जीत से ही मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा था। यह घटना अब भी उसी तरह मेरी आँखों के सामने रहती हैं।
खाने के लिए मुझे कुछ नहीं दिया गया था और ना ही मुझे इस की इच्छा थी । कोई दस बजे होंगे एक डाक्टर आया, जिस के हाथ में बहुत से फ़ार्म थे। डाक्टर मेरे पास बैठ गया और बोला की एमआरआई की रिपोर्ट में कुछ सीरियस दीख रहा है, लगता है बाऊल में छेद है और अगर हुआ तो यह बहुत सीरियस है। उसने कहा कि इस से डैथ भी हो सकती है और अगर ना भी हुई तो मैं कभी बैड से उठूंगा नहीं और मेरी ज़िन्दगी साल या दो साल से ज़्यादा नहीं होगी और ऑपरेशन के बाद मुझे वेस्टपार्क हस्पताल में बैड दे दी जायेगी। अगर मैं ऑपरेशन चाहूँ तो मेरे घर के नज़दीकी सदस्य के हस्ताक्षर की जरुरत होगी लेकिन यह ऑपरेशन जल्दी होना चाहिए। यहां के डाक्टर मरीज़ से साफ़ साफ़ बातें करते हैं और कुछ भी छुपाते नहीं हैं। अब तक मैंने इतना कुछ देखा था, इस को झेलते झेलते मुझ में एक शक्ति आ गई थी और डाक्टर की बातों से मुझे कोई डर नहीं लगा। मैंने डाक्टर को कहा की हस्ताक्षर मैं खुद करता हूँ और मेरा ऑपरेशन जल्दी हो जाए। कौनसेंट वाला फार्म काफी बड़ा था। इस को पड़ना मैंने मुनासिब नहीं समझ और दस्तखत कर दिए। मुझे पता था की इस फ़ार्म में यह ही होगा की अगर ऑपरेशन कुछ गलत हो गया तो हस्पताल ज़िमेदार नहीं होगा। डाक्टर चले गया। रात के साढ़े बारह बजे थे। एक नर्स ट्रॉली लेकर आ गई और मुझे उस पर लेटा दिया और बताया कि हम ऑपरेशन थियेटर को जा रहे हैं। जब ऑपरेशन थियेटर में पहुंचे तो वहां दो सर्जन और एक ऐनेस्थिटिशियन था। इन में एक सर्जन वोह ही था जिसने फ़ार्म पर मेरे दस्तखत कराये थे। वोह आपस में बातें करते जा रहे थे जो उनकी मैडिकल के सम्बन्ध में थीं, जिनको मैं समझ नहीं सकता था।
एक बजे ऐनेस्थिटिशियन मेरे पास आया, जिस के हाथ में एक इंजेक्शन की सिरिंज थी। उस ने सूई मेरी कलाई में घोंप दी और मुझे दस तक गिनने को बोला। मुझे याद है, पांच तक पहुँच कर मैं बेहोश हो गया था । कोई तीन बजे एक सर्जन ने मेरे गाल पर छोटी सी चपत लगाईं और बोला, “gurmail ! wake up ! it is appendics, lucky ! you will be ok “, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे गले में कुछ फंसा हुआ है। मैं ने इछारा किया कि मेरे गले में कुछ था। उस ने कहा कि मेरे गले में कुछ नहीं था, सिर्फ मुझ को फीलिंग ही थी क्योंकि ऑपरेशन के वक्त मेरे मुंह में ब्रीदिंग किट थी। ऑपरेशन के बाद मुझे एमरजेंसी वार्ड में ले आये। इस वार्ड में मेरे जैसे पेशैंट ही थे। एक नर्स ने हर दम मेरे पास रहना था। वार्ड में अँधेरा था क्योंकि अभी भी रात थी। पिछाब के लिए ट्यूब फिट की हुई थी और बैड के साथ एक स्टैंड पर प्लास्टिक बैग रखा हुआ था। ट्यूब में से पिछाब कतरा कतरा आता हुआ उस बैग में गिर रहा था। मेरे ऊपर एक चादर थी, चादर के नीचे मैंने अपना हाथ डाल कर महसूस किया। पेट के ऊपर से नीचे तक पट्टी की हुई थी, जिस से मैंने अंदाजा लगाया कि कमज़कम आठ नौ इंच पेट फाड़ा होगा। नर्स थोह्ड़ी थोह्ड़ी देर बाद मेरा ब्लड प्रेशर और टैम्प्रेचर चैक्क किये जा रही थी।
सुबह के दस बज गए थे। मैं किसी तरफ भी हिल नहीं सकता था। पीठ के बल सीधा लेटा हुआ था। यहां सब मेरे जैसे ही थे, कई तो बेहोश थे। कुछ देर बाद एक मुस्कराता हुआ चेहरा दिखाई दिया, यह मेरी बड़ी बिटिया का था, जो मेरी ओर देख कर मुस्करा रही थी । ओ हैलो पिंकी ! मैंने कहा। पिंकी और जमाई राजा लंदन से आ गए थे। सभी ने डाक्टर से रिपोर्ट ले ली थी और सभ को एक संतुष्टि सी हो गई थी कि ऑपरेशन ठीक ठाक हो गया था। मैं कोई ख़ास बोल तो नहीं सकता था लेकिन सभी को मुस्कराकर अंगूठे खड़े कर देता कि मैं फिट हूँ। कुछ देर बाद बाते करके पिंकी और जमाई राजा, चरनजीत चले गए और फिर एक एक करके सभी मिलकर चले गए। कुलवंत आखर में आई, उसकी आँखों में आंसू थे, मैंने कहा फ़िक्र की कोई बात नहीं थी। संदीप जसविंदर भी आ गए थे और बातें करके सब चले गए। एक घंटा ही विजटिंग टाइम होता है और यह जल्दी ही बीत गया और सभी घर को वापस चले गए। दरअसल मेरे पेट में अपेंडिक्स फट गिया था, जिस के कारण सारे शरीर में ज़हर फ़ैल गिया था, अगर देर हो जाती तो पता नहीं आज मैं यह लिख रहा होता या नहीं। मेरे दिमाग में उस वक्त क्या था, क्या क्या सोच रहा था, मुझे याद नहीं, बस इतना ही याद है कि मेरे मन में कोई घबराहट नहीं थी, जैसे दुखों को झेलना मैंने सीख लिया था।
चलता. . . . . .