क्षणिकाएं
१.
बदलते रिशते संग बदलते हम तुम भी,
फिर दोष औरों को क्यों देते हैं हम भी।
२.
आशाओं से परे जब भी हम कुछ पाते हैं,
जाने वो खुशी हम फिर जीभर जी पाते हैं।
३.
तुम कह दो तो रुक जाएं सदा के लिए शहर में तेरे,
पर तुमने कभी चाहा भी नहीं और कहा भी नहीं।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !