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बाबा गिरी जी का प्रवचन चल रहा था । हजारों भक्तों की भीड़ शांतचित्त होकर उनका प्रवचन सुन रही थी । बाबाजी ने बताया ” सत्कर्म ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है । हर बुरे कर्म के लिए परमात्मा ने दंड निर्धारित किया हुआ है । मसलन व्यभिचारी आदमी को नर्क वास भोगना पड़ता है । नर्क में उसे तप्त लाल लोहे के खम्भे से बांधकर यमदूतों द्वारा यातना दी जाती है ……………….। ”
इसी तरह समस्त दुष्कर्मों के लिए दी जाने वाली सजा का वर्णन कर बाबाजी ने आज का प्रवचन समाप्त किया । बाबाजी मंच के पीछे स्थित अपने कक्ष में आराम फरमा रहे थे कि उन्हें कुछ दिन पहले ही आश्रम में आई उन्हिंसे दीक्षित युवा साध्वी नंदा दिखाई पड़ीं । उन्होंने तुरंत ही अपने एक सेवक को आवाज दी और कहा ” साध्वी नंदा जी से कहो हमने उन्हें एकांत कुटीर में तलब किया है । और हाँ ! कोई मिलने आये तो बता देना बाबाजी दो घंटे के लिए साधना में लीन हैं । ”
सेवक ने उन्हें याद दिलाया ” बाबाजी ! यह आप क्या करने जा रहे हैं ? नर्क का वह तपता लोहे का खम्बा भुल गए ? ”
बाबाजी मुस्कुराये और बोले ” मुर्ख ! नर्क में वह खम्बा कब का उखड चुका है । हमने तो सिर्फ लोगों को पुरानी ही बात बताई है यह खम्बा उखड़ने की ताज़ी खबर नहीं सुनाई । जा ! अपना काम कर । “
( सदाचारी धर्माचार्यों से क्षमाप्रार्थी होते हुए पाखंडी बाबाओं के पोल खोल अभियान के तहत एक लघुकथा । वैसे इस किस्म के कुछ बाबा जेल की शोभा भी बढ़ा रहे हैं । )