लघुकथा

कर्तव्य पथ

आज करूणा, सासू माँ के न रहने पर दोराहे पर खडी थी जिसकी कल्पना स्वप्न में भी नहीं की थी ।दूसरे शहर गए अभी, दिन ही कितने हुए थे, घर के सदस्यों में आपसी अहम के दौरान होने वाले क्लेश के चलते पति शिव ने आफिस से स्थानांतरण दूसरे शहर में करवा लिया, फिर तो जितने मुंह उतनी बातें ,”इतनी कम तनख्वाह में बच्चों को लेकर अकेले रहोगे आटे दाल का भाव मालूम चलेगा।”

कम में सुखी रहने का भाव लिए जिदंगी पटरी पर दौड रही थी, कि अचानक सासू माँ की बीमारी का तार मिला तो अगले ही पल परिवार का संबल बनने खडी हो गयी लेकिन घर के सदस्यों का रवैया ज्यों का त्यों था ।
सासू माँ के गुजर जाने के बाद एक तरफ कच्ची उमर के पायदान पर खडी ननद की जिम्मेदारी थी तो दूसरी तरफ पति और बच्चों के साथ स्वछंद आसमां में उडान भरती जिदंगी ।
रात खाने के वक्त पति बोले, ” करूणा क्या सोचा ?”
” सोचना क्या है , इतनी भी स्वार्थी नहीं कि जिम्मेदारी से भाग घर की बेटी को अकेला छोड दूँ , माँ के बिना बच्चों का वजूद नहीं होता है , दोनों बच्चों के साथ दीदी भी मेरी बेटी हैं ।”
दोराहे पर खडी करूणा के सामने से धुंध छट गयी और अंतर्मन की सकारात्मक आवाज सुन कर्तव्य पथ पर बढ गई ।

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।