गीत/नवगीत

महान है किसान

पानी की भर-भर अॅजुलियाॅ
जो सींच दे हर पेड़ को,
जलती धरा पर नग्न पग से,
जोत डाले खेत को–!

दिन हो दुपहरी शाम हो
या रात हो कोई पूस की,
मेहनत से भी डरता नही
करता है जो अटखेलियाॅ,
मौसम से गिरती बिजलियाॅ
क्या दे गई है किसान को–!

जब प्रकृति हो आवेश में
होते बहुल उपदेश है,
सूखा वाढ ओले में भी
सरकार करती रेलियाॅ,
जन-जन सुखाय की बोलियाॅ
चलती नही है निदान को–!

जननी हमारी दे रही
हमको हमारे कर्म है,
किसान हमको रूबरू
करता प्रकृति के मर्म से,
भर दो न इनकी झोलियाॅ
कुछ इनकी भी पहचान को–!

है भाग्य में किसके ये कितना
सोचता न किसान है,
मेहनत से करता देश के
जीवन का  वो ही निदान है,
सोचो तो क्या हम कर रहे
अन्यदाता के सम्मान को–!!

नीरू श्रीवास्तव

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005