महान है किसान
पानी की भर-भर अॅजुलियाॅ
जो सींच दे हर पेड़ को,
जलती धरा पर नग्न पग से,
जोत डाले खेत को–!
दिन हो दुपहरी शाम हो
या रात हो कोई पूस की,
मेहनत से भी डरता नही
करता है जो अटखेलियाॅ,
मौसम से गिरती बिजलियाॅ
क्या दे गई है किसान को–!
जब प्रकृति हो आवेश में
होते बहुल उपदेश है,
सूखा वाढ ओले में भी
सरकार करती रेलियाॅ,
जन-जन सुखाय की बोलियाॅ
चलती नही है निदान को–!
जननी हमारी दे रही
हमको हमारे कर्म है,
किसान हमको रूबरू
करता प्रकृति के मर्म से,
भर दो न इनकी झोलियाॅ
कुछ इनकी भी पहचान को–!
है भाग्य में किसके ये कितना
सोचता न किसान है,
मेहनत से करता देश के
जीवन का वो ही निदान है,
सोचो तो क्या हम कर रहे
अन्यदाता के सम्मान को–!!
— नीरू श्रीवास्तव