मेरी हसरतें
हसरतों का मैंने आज क़त्लेआम कर दिया
लाल सुर्ख़ आँखों ने ये पैग़ाम भर दिया
कभी बसते थे जो इन गहरी सी आँखों में
आज वो पानी बनकर बह रहे है अश्क़ों में
रात जिनकी यादों में गुलज़ार होती थी
भोर में वही यादें ख़ून के आँसु रुलाती थी
ये नैन भी अब तो पथरा गए है रोते रोते
पर उस ज़ालिम ने ना देखा नज़रें पलटके
तेरी इस अदायगी को मुश्किल से समझाया
उम्मीदों के नदी में सब हसरतों को बहाया
तेरे ठुकराने के बाद यूँ उजड़ गयी ज़िंदगी
देखो आँगन में बिखरी है तम्मना और बंदगी
निंदे उड़ गयी है और ठिठुर गए सब ख़्वाब
कुछ जले जले अरमान कुछ टूटे टूटे आब
तेरे वो ज़हरीले लफ़्ज़ कानों में गूँजते है
सुना सुना कर मुझे क्यूँ पागल वो करते है
अब ना आना कभी मुड़के इस बेरंग ज़िंदगी में
आके फिरसे ना सजाना कोई हसरतें ज़िंदगी में
— सुवर्णा परतानी