राजनीति

बसपा की मुस्लिम परस्त राजनीति

आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है और इसी के साथ सभी दलों ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं जिसमें बसपा नेत्री मायावती सबसे आगे दिखायी पड़ रही हैं। बसपा नेत्री मायावती ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम गठजोड़ का सहारा लिया है और टिकट बंटवारे के खेल में ब्राह्मणों का कद घटा दिया है। नववर्ष की शुरूआत में ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है कि धर्म, जाति, मत और संप्रदाय के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश टी एस ठक्कर की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ ने यह निर्णय सुनाया था। एक प्रकार से यह फैसला उन सभी दलों की बुनियाद पर जोरदार प्रहार करता है जिनका अस्तित्व ही धर्म और जातिवाद की राजनीति पर टिका है। इनमें उप्र में समाजवादी और बहुजन समाजवादी दल की राजनीति सर्वोपरि है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन दलों को सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला भी साजिश ही नजर आ रहा होगा।

बसपा नेत्री मायावती ने सर्वोच्च न्यायालय को लगता है कि सिरे से खारिज कर दिया है। यही कारण है कि बसपा नेत्री मायावती ने विगत दिनों लखनऊ में अपने उम्मीदवारों की घोषणा करते समय उनकी जातियों का भी परिचय कराकर अपने तेवर दिखा दिये हैं। बसपा नेत्री मायावती ने बताया कि उन्होंने सभी 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर दिये हैं। जिसमें सबसे अधिक 113 सवर्णों, अनुसूचित जाति-जनजाति के 87 प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है। जिसमें सवर्ण प्रत्याशियों में 66 ब्राहमण, 36 क्षत्रिय जबकि अन्य जातियों को 11 टिकट दिये गये हैं। बसपा नेत्री मायावती ने अपनी पहली 200 उम्मीदवारों की सूची में 59 मुसलमानों को टिकट देकर सपा और कांग्रेस के खेमे में हलचल मचा दी है। बसपा ने पश्चिमी उप्र में मुस्लिमों को सर्वाधिक टिकट जानबूझकर दिये हैं। कारण साफ है क्योंकि वहां पर मुस्लिम आबादी बहुतायत में हो गयी है। पश्चिमी उप्र में सर्वाधिक मुस्लिम बहुल जिला रामपुर है। जहां 50.57 फीसदी मुस्लिम आबादी है।

जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार मुरादाबाद, बिजनौर, मुजफ्फर नगर, ज्योतिबा फुले नगर, बलरामपुर में मुस्लिम आबादी की तादाद बहुत अधिक हो गयी है तथा चुनाव परिणामों को सीधा प्रभावित करने की क्षमता रखती है। मेरठ, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बागपत, गाजियाबाद, पीलीभीत, संत कबीर नगर, बाराबंकी, बुलंदशहर, बदायूं, लखनऊ आदि में मुस्लिम आबादी 20 फीसद से भी अधिक है।
बसपा नेत्री मायावती ने अपनी ताजा सोशल इंजीनियरिंग में दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर ही बल दिया है। साथ ही अन्य पिछड़ी जातियों को भी लुभाने की कोशिश की है। उन्होंने मुस्लिम समाज को सर्वाधिक तवज्जो देते हुए 97 विधानसभा टिकट मुसलमानों को देकर अपनी स्थिति साफ कर दी है। वह मुस्लिम समाज की परम हितैषी बनना चाह रही हैं। अपनी हर प्रेसवार्ता में वह मुस्लिम समाज से बसपा को ही वोट देने की अपील कर रही हैं तथा वह यह भी तर्क दे रही हैं कि सपा में चल रहे दंगल के कारण मुस्लिम समाज दुविधा में पड़ गया है। उनका कहना है कि यदि मुसलमानों का पूरा का पूरा 22 प्रतिशत वोट यदि बसपा को मिल जाता है तो बसपा की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता। इस बार के चुनावों में बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों ने पेश कर दी है। यही कारण है कि बसपा मुस्लिम मतदाता को लुभाने के लिये ही सर्वाधिक जोर लगा रही है। बसपा नेत्री मायावती का तर्क है कि इस बार नोटबंदी से परेशान मुसलमान और दलित समुदाय अपना पूरा का पूरा वोट बसपा को ही देने जा रहा है।

वैसे भी 2017 का विधानसभा चुनाव बसपा के राजनैतिक कैरियर के लिए करो या मरो जैसा ही है। विगत विधानसभा चुनावों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा था तथा फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते बसपा लोकसभा में अपना खाता भी नहीं खोल पायी थी। यही कारण है कि वह एक बार फिर अपनी पुरानी थ्योरी पर ही अमल कर ही हैं। बस उसमें एक बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि इस बार मुस्लिम समाज पर नजरे-इनायत है। सपा में चल रही आंतरिक कलह को बसपा नेत्री मायावती अपने लिये लाभकारी मान कर चल रही हैं। वह स्वयं और पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता नसीमुददीन सिद्दीकी मुसलमानों को लगातार समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि सिर्फ बसपा ही भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकने में सक्षम हैं। बसपा नेत्री मायावती अब यह समझाने में जुटी हुई हैं कि जब-जब सपा सत्ता में आती हैं तब-तब भाजपा बेहद मजबूत होती है और जब बसपा सत्ता में रहती है तब भाजपा कमजोर हो जाती है। उन्होंने इस बात का उदाहरण देते हुए बताया कि जब वह सत्ता में थी तब भाजपा के केवल 9 सांसद ही जीत पाये थे, जबकि सपा के आने पर 73 जीत गये और केंद्र में भाजपा काबिज हो गयी।

बसपा नेत्री मायावती उप्र में भी बिहार की तर्ज पर आरक्षण की राजनीति कर रही हैं। वह पिछड़े समाज के लोगों को यह कहकर भड़काने का अनथक प्रयास कर रही हैं कि पीएम मोदी की नीतियां आरक्षण विरोधी हैं। उनका कहना है कि केंद्र अधिकतर काम निजी क्षेत्रों के हवाले कर रहा है, जिसके कारण आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वह नोटबंदी का भी पूरी ताकत के साथ विरोध कर रही हैं तथा उनका कहना है कि नोटबंदी करके पीएम मोदी ने गरीबों को फकीर बनाकर रख दिया है। बसपा नेत्री मायावती ने मुस्लिम समाज के हित में क्या-क्या काम बसपा ने किये हैं, यह बताने के लिये एक पुस्तिका भी प्रकाशित करवायी है जिसमें सपा के शासनकाल में हुए दंगों का भी विवरण दिया गया है। अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि बसपा, सपा और कांग्रेस इसी प्रकार से छद्म तुष्टीकरण की राजनीति करती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब अदालतों में उनके खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जायेगी। अतः माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने अपना फैसला तो ऐतिहासिक सुनाया है लेकिन देश की राजनीति को स्वच्छ करने के लिए उक्त फैसले को धरातल पर उतारने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। तभी न्यायपालिका की वास्तविक गरिमा बहाल हो सकेगी।

मृत्युंजय दीक्षित