वह कौन थी ?-संस्मरण
शनिवार का दिन था । मैं सुबह दस बजे कॉलेज के लिए अपने काइनेटिक हौंडा से निकली जैसे ही मैं मिनिस्टर रोड पहुंची एक मोटर साइकिल सवार बड़ी तीव्र गति से मेरे स्कूटर को टक्कर मार कर भाग गया । मैं रोड के बीचोबीच गिर गई और मेरा हेलमेट दूर जाकर गिरा । भगवान का लाख -लाख शुक्रिया कि सर में चोट नहीं आई लेकिन मेरा दाहिना हाथ कंधे से खिसक गया । भीड़ जमा हो गई लेकिन सभी आदमी थे किसी ने भी पकड़ के नही उठाया तभी विपरीत दिशा में ऑटो से जा रही एक लड़की ने देखा और उसने ऑटो छोड़ दिया और आकर मुझे उठा कर सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर बिठाया , पानी पिलाया , स्नेहिल स्पर्श से सहलाया ,धीरज बंधाया और मुझसे फोन नंबर लेकर मेरे कॉलेज और मेरी मित्र को फोन करके बुलाया । एम्बुलेंस बुलवाई और मेरी मित्र के आने तक वह मेरे साथ रुकी और मुझे एम्बुलेंस में बिठा कर वो चली गई ।
मेरी मित्र ने मुझे अस्पताल में भर्ती करवा कर मेरा हाथ सेट करवाया और पतिदेव को सूचना दे दी । उनका ऑफिस बहुत दूर था इसलिए उनके पहुँचते ही मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई । जब मैं अस्पताल में थी उसने मेरे घर पर फोन किया मेरे पति से मेरा हालचाल पूछा ,अपना नाम `नूरी’ बताया और यह बताया कि शनिवार को उसकी छुट्टी होती है लेकिन वह घर से यह सोच कर निकली कि ऑफिस जाकर जो काम बाकी है वह पूरा कर लेगी। वह इंजीनियर है ,उसने कंपनी का नाम बताया पर फोन नंबर नहीं बताया और मेरे पति ने भी नहीं पूछा ,तब हमारे पास सेल फोन नहीं था । मेरा हाथ ठीक होने में दो माह लग गए और मैं जब उस कंपनी में उसका शुक्रिया करने गई तब तक उसका तबादला हो चुका था । बहुत अफ़सोस हुआ कि मैं उसका शुक्रिया भी अदा न कर सकी । मैं घबराहट और पीड़ा में उसका चेहरा भी ठीक से न देख सकी । बस इतना ही याद है कि वह मुस्लिम होकर भी मेरे लिए भगवान की दूत बनकर आई थी इसलिए तो उसने अपना कोई संपर्क नंबर भी नही छोड़ा । कौन कहता है कि इंसानियत मर गई है ? इंसानियत किसी की जाति या धर्म नहीं देखती ,वह तो सिर्फ खुदा का हुक्म मानती है । इस घटना की याद आते ही मेरा मन कल्पना में उसकी तरह -तरह की छबि तराशने लगता है,,,,खुदा की अद्भुत रचना थी `नूरी ‘ … मेरे दिल को आज भी तलाश है … ` वह कौन थी’? दिमाग में बार -बार गूंजता है और कल्पना में उसकी कई धुंधली आकृतियां उभरती और मिटती हैं । बस तब उसके लिए मेरे दिल से लाख-लाख दुआएं निकलती हैं ।
-डॉ. रमा द्विवेदी